Saturday, September 10, 2016

बिल्ली भर मत पालना।

एक फकीर मर रहा था तो उसने अपने शिष्य से कहा कि देख, एक बात का ख्याल रखना, बिल्ली भर मत पालना। वह फकीर मर गया इतना ही कहकर।इसकी व्याख्या भी न कर गया। शिष्य तो बड़ा परेशान हुआ। बिल्ली न पालना,आखिरी संदेश!कोई ब्राहृज्ञान की बात करनी थी। जीवन भर इस बुद्धू की सेवा कीऔर आखिर में मरते वक्त यह कह गया कि बिल्ली न पालना। बिल्ली हम पालेंगे ही क्यों?बिल्ली से लेना-देना क्या है। और बिल्ली पाल भी ली तो इससे मोक्ष में कौन-सी बाधा पड़ती है। किसी शास्त्र में लिखा नहीं कि बिल्ली मत पालना। बड़े-बड़े आदेश दिए हैं। ऐसा मत करना, वैसा मत करना, दस आज्ञाएँ हैं-मगर बिल्ली मत पालना।चोरी मत करना,बेईमानी मत करना,झूठ मत बोलना -समझ में आता है, मगर बिल्ली मत पालना, यह कौन सी नैतिकता का आधार है। उसे हैरान देखकर एक दूसरे बूढ़े आदमी ने कहा, तू परेशान मत हो। मैं तेरे गुरु को जानता हूँ, वह ठीक कह गया है। और मैं भी तुझसे कहता हूँ कि अगर उसकी बात मानकर चला तो बच जाएगा।
उसकी बात न मानी तो मुश्किल में पड़ेगा। क्योंकि वह मुश्किल में पड़ा था।शिष्य ने पूछा मुझे पूरी बात समझाकर कह दें,कैसी मुश्किल?क्योंकि मेरी अकल में ही नहीं बात बैठती। मैने बड़े शास्त्र पढ़े हैं, मगर बिल्ली मत पालना। तो उसने कहा,सुन तेरा गुरु कैसी मुसीबत में पड़ा।तेरे गुरु ने संसार छोड़ दिया डर से कि यहां फंस जाऊंगा,जैसे लोग छोड़ देते हैं डर से। शादी नहीं की,दुकान नहीं की बाज़ार में नहीं बैठा,भाग गया। जंगल में जाकर रहने लगा। एक मुसीबत आई। सिर्फ दो लंगोटियाँ थीं उसके पास।बस उतनी दो लंगोटियाँ ले गया था। वह सूखने डालता,रात को चूहे लंगोटी काट देते। उसने गांव के लोगों से पूछा कि क्या करना?
     उऩ्होने कहा एक बिल्ली पाल लो। बस वहीं से सारा उपद्रव शुरु हुआ, सारा संसार शुरु हुआ। बात जंची गुरु को,उसने बिल्ली पाल लीं। बिल्ली चूहे तो खा गई, लेकिन जब चूहे खा गई तब बिल्ली भूखी बैठी रहे वहां सूखने लगी। अब उसकी हत्या का पाप लगेगा। तो उस फकीर ने लोगों से पूछा कि भाई यह तो ठीक है,तुमने सुझाव दिया,तुम्हारी बात काम कर गई, चूहे खत्म कर दिए बिल्ली ने। मगर अब बिल्ली का क्या हो? तो उन्होने कहा, ऐसा करो,एक गाय पाल लो, तुम्हें भी दूध मिल जाएगा, बिल्ली को भी दूध मिल जाएगा। तुम यह जो रोज़ रोज़ भीख मांगने जाते हो, इस झंझट से भी बचोगे। और गाय हम दे देते हैं, हमारी भी झंझट मिटेगी कि तुम्हें रोज़-रोज़ आना,रोज़ तुम्हें हमें भिक्षा देना।गायें गांव के पास बहुत है, हम एक गाय तुम्हें गांव की तरफ से दे देते हैं।      फकीर को बात जंची, बात सीधी गणित की थी। गाय पाल ली, लेकिन झंझट-अब गाय के लिए घास चाहिए, भोजन चाहिए, गांव के लोगों ने
कहा, अच्छा यह हो कि ज़मीन तो यहां पड़ी ही है ढेर तुम्हारे पास,थोड़ी खेती-बाड़ी करने लगो,बैठे-बैठे करते भी क्या हो।तो घास भी हो जाएगा, गेहूँ भी हो जाएंगे,तुम्हारी रोटी का भी इंतजाम हो जाएगा। बिल्ली भी मज़ा करेगी, गाय भी मज़ा करेगी,तुम भी मज़ा करो। तो बेचारे ने खेती-बाड़ी शूरु की। अब खेती-बाड़ी करे कि भजन कीर्तन करे? गायों को सम्हाले,बिल्ली को सम्हाले कि शास्त्र पढ़े?फुर्सत ही न मिले भजनकीर्तन की। शास्त्र इत्यादि भूलने लगे।उसने गांव के लोगों से कहा,तुमने तो यह झंझट बना दी।मुझे समय ही नहीं मिलता।तो उन्होने कहा,ऐसा कामकरो कि गांव में एक विधवा है,उसका कोई है भी नहीं, वह भी परेशान है। उसको हम रख देते हैं यहां,तुम्हारी सेवा भी करेगी,रोटी भी--तुम मज़े से भजन करना, तुम कीर्तन करना, वह रोटी भी बना देगी। और मज़बूत विधवा है और किसान रही है, खेती-बाड़ी भी कर देगी।
     यह बात भी जंची। गणित फैलता चला गया। विधवा भी आ गई। उसने खेती-बाड़ी भी शुरु कर दी, हाथ-पैर भी दबा देती,बीमारी होती तो सिर भी दबा देती। फिर जो होना था सो हुआ। फिर विधवा से प्रेम लग गया। कुछ बुरा भी न था,आखिर इतनी सेवा करती थीऔर उस पर प्रेम न उमगे तो क्या हो। वे ही गांव के लोग आ गये कि यह बात ठीक नहीं अब अच्छा यही होगा कि आप इससे विवाह कर लो,क्योंकि इससे बड़ी बदनामी हो रही है,हमारे गांव की बदनामी हो रही है।तो विवाह हो गया, बच्चे हुए। फिर उपद्रव फैलता चला गया,फैलता चला गया। फिर बच्चों का विवाह हुआ। और उस बूढ़े आदमी ने कहा, तुम्हारा गुरु ठीक कहगया है कि बिल्ली मत पालना,यह उसकी ज़िन्दगी भर का सार है।
उस  बिल्ली से ही सब उपद्रव शुरु हुआ था।उपद्रव तो कहीं से भी शुरु हो सकते हैं।और बिल्ली की भीऔर गहराई में जाओ तो लंगोटी से शुरु हुआ।गुरु को असल में कहना था कि लंगोटी मत रखना। मगर कुछ तो रखोगे। लंगोटी,भिक्षापात्र,कुछ तो रखोगे। नहीं तो ज़िन्दगी चलेगी कैसे? जीओगे कैसे?कोई राजमहल ही नहीं बांधते हैं,कोई भी चीज़ बांध लेगी। तो असली सवाल यह नहीं है कि क्या तुम्हारे पास है,असली सवाल यह है कि क्या तुम्हारे पास वह कला है जिससे तुम वस्तुओं के बीच रहते हुए भी वस्तुओं से मुक्त रह सको?


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