Tuesday, November 8, 2016

आयु कुल चार वर्ष


     नौशेरवाँ को जो भी मिले, उसी से कुछ न कुछ सीखने का स्वभाव हो गया था। अपने इस गुण के कारण ही उन्होंने अपने जीवन के स्वल्प काल में ही महत्वपूर्ण अनुभव अर्जित कर लिये थे। राजा नौशेरवाँ एक दिन वेष बदलकर कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक वृद्ध किसान मिला। किसान के बाल पक गए थे, पर शरीर में जवानों जैसी चेतनता विद्यमान थी। उसका रहस्य जानने की इच्छा से नौशेरवाँ ने पूछा, "महानुभाव! आपकी आयु कितनी होगी?'
     वृद्ध ने मुस्कान भरी दृष्टि नौशेरवां पर डाली और हँसते हुए उत्तर दिया," कुल चार वर्ष।' नौशेरवाँ ने सोचा बूढ़ा दिल्लगी कर रहा है। पर सच-सच पूछने पर भी जब उसने चार वर्ष ही आयु बताई, तो उन्हें कुछ क्रोध आ गया। एक बार तो मन में आया कि उसे बता दूँ- मैं साधारण व्यक्ति नहीं, नौशेरवाँ हूँ, पर उन्होंने विवेक को संभाला और विचार किया कि उत्तेजित हो उठने वाले व्यक्ति सच्चे जिज्ञासु नहीं हो सकते, किसी के ज्ञान का लाभ नहीं ले सकते, इसलिए उठे हुए क्रोध का उफान वहीं शांत हो गया।
     अब नौशेरवां ने नये सिरे से पूछा-' पितामह! आपके बाल पक गए, शरीर में झुरियाँ पड़ गर्इं, लाठी लेकर चलते हैं, मेरा अनुमान है कि आप अस्सी से कम के न होंगे, फिर आप अपने को चार वर्ष का कैसे बताते हैं?' वृद्ध ने इस बार गम्भीर होकर कहा-आप ठीक कहते हैं, मेरी आयु अस्सी वर्ष की है, किन्तु मैने छियत्तर वर्ष धन कमाने, ब्याह-शादी और बच्चे पैदा करने में बिताए। ऐसा जीवन तो कोई पशु भी जी सकता है। इसलिए उसे मैं मनुष्य की अपनी ज़िन्दगी नहीं, किसी पशु की ज़िन्दगी मानता हूँ। इधर चार वर्ष से समझ आई। अब मेरा मन ईश्वर उपासना, जप, तप, सेवा, सदाचार, दया करुणा, उदारता में लग रहा है। इसलिए मैं अपने को चार वर्ष का ही मानता हूँ।' नौशेरवाँ वृद्ध का उत्तर सुनकर संतुष्ट हुए और प्रसन्नता पूर्वक अपने राजमहल लौटकर सादगी, सेवा और सज्जनता का जीवन जीने लगे।

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