Friday, November 18, 2016

मन्त्रियों के रोकने पर भी राजा दान करता था

मन्त्रियों के रोकने पर भी राजा दान करता था
     एक राजा को किसी महात्मा ने यह उपदेश किया कि जब तक तुम्हारे हाथ में धन है,तब तक भलाई और परमार्थ के काम किये जाओ। वह राजा विचारवान और श्रद्धालु था। उसने महात्मा जी की बात गाँठ बाँध ली और अनेक स्थानों पर सत्संग एवं भजनाभ्यास के लिये आश्रम बनवाने आरम्भ कर दिये और साधु-महात्माओं के लिये लंगर तथाअन्य प्रकार की सेवा आदि का प्रबन्ध भी कर दिया।
     राजा के मंत्री आदि सांसारिक विचार रखने वाले थे। उनको राजा की यह उदारता एक आँख न भाती थी,अतएव वे सब के सब मिलकर एक साथ राजा को इन कामों से मना करने लगे और यह भी कहा कि राजकाज में और भी सहरुाों प्रकार कीआवश्यकतायें सामने आती रहती हैं,इसलिये राजकोष को इसप्रकार व्यर्थ के कार्यों में लुटाना उचित नहीं।चूँकि राजा दृढ़ निश्चय वाला था,इसलिये वहअपने मार्ग से तनिक भी न डगमगाया।इधर मंत्री भी चुप करके न बैठेऔर बार-बार राजा के कान भरते रहे।अन्त में राजा ने तंग आकर यहआदेश जारी कर दिया कि जो भी मुझे इन धार्मिक कामों में धन व्यय करने से रोकेगा,मैं उसकी जीभ कटवा दूंगा।भय के कारण मंत्री मुखसे कहने से तो रुक गये,परन्तुउनके मन को यह बात सहन नहीं हुई, इसलिये उन्होने एक दिन राजप्रासाद की दीवार पर ये शब्द लिख दिये-""माल जमा कुन ता अज़ खतरा निजात याबी''अर्थात यदि संकटों से बचना चाहते हो तो धन का संचय करो। राजा ने जब ये शब्द पढ़े तो समझ गया कि मंत्री मुझे धन व्यय करने से रोकना चाहते हैं। उसने उन शब्दों के नीचे ये शब्द लिखवा दिये,"'निको कारान रा खतरा व खौफ नेस्त।''अर्थात भलाई के काम करने वालों को किसी प्रकार के संकट एवं भय का सामना नहीं करना पड़ता।मंत्रियों ने देखा कि राजा ने हमारे परामर्श को रद्द कर दिया, फिर भी उन्होने एक बार और उसके नीचे लिखवा दिया,""इन्सान गाह बगाह आमाजगाहे-मुसीबत में शवद'' अर्थात् मनुष्य कभी-कभी संकट का निशाना बन ही जाता है। राजा समझ गया कि उनका संकेत है कि कभी-कभी मनुष्य को संकटों का सामना करना पड़ता है जैसे श्री रामचन्द्र जी महाराज एवं युधिष्ठिर आदि पर भी संकट आये। किन्तु इन अज्ञानियों को यह पता नहीं कि संचित किया हुआ धन संकटों के आने से पूर्व ही मनुष्य का साथ छोड़ जाता है। यह विचार करके राजा ने उसके नीचे लिखवा दिया,""जमा करदा मालो-ज़र किबल अज मुसीबत ज़ाय में शवद''अर्थात् संचित किया हुआ धन संकटों के आने के पूर्व ही नष्ट हो जाता है।
    मंत्रियों ने भली प्रकारआज़मा कर देख लिया कि राजाअपने निश्चय पर अडिग है,अब यदि अधिक छेड़छाड़ करेंगे तो राजा के क्रोध से बच नहीं सकेंगे,इसलिये सब के सब शान्त होकर बैठ गयेऔर राजा नेअपना सम्पूर्ण जीवन सन्त-महात्माओं की सेवा और सत्संग में रहकर सुख-आनन्द से व्यतीत किया तथा इस लोक में भी ख्याति प्राप्त की और परलोक भी संवार लिया। इस कथा से सिद्ध होता है कि दृढ़ संकल्प में इतनी महान शक्ति है जो दृढ़ निश्चय से भक्तिमार्ग पर चल पड़ता है, वह अपना लोक-परलोक सुगमता से संवार लेता है।

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