एक आस्तिक और एक नास्तिक मनुष्य में
वाद विवाद चल रहा था। नास्तिक कहता था कि ईश्वर अथवा मालिक के नाम का कोई
भी अस्तित्व संसार में नहीं है। आस्तिक बोला,"" नहीं भाई! यह संसार की
रचनाऔर इसका प्रबन्ध यों ही तो नहीं हो गया।जिस शक्ति अथवा सत्ता के आधार
पर यह सब रचनाऔर इसका प्रबन्ध होता है,तुम उस मालिक के अस्तित्व को मानने
से इनकार किस तरह करते हो?''नास्तिक बोला ""यदि तुम्हारे कथनानुसार कोई
ईश्वर है मालिक है, तो वह हमें दिखाई क्यों नहीं देता? बोलो,यदि तुम मुझे
उस ईश्वर अथवा मालिक को दिखा तो,तब तो मैं विश्वास कर सकता हूँ अन्यथा
नहीं।''इस बात को सुनकर आस्तिक ने उसे समझाया कि ईश्वर का रूप सूक्ष्म से
भी सूक्ष्म है। वह इन ज़ाहिरी आँखों से नहीं देखा जा सकता। किन्तु नास्तिक
किसी प्रकार से भी मानने को तैयार न हुआ। तब आस्तिक पुरुष ने उठकर ज़ोर से
एक घूंसा उस नास्तिक की कमर में दे मारा।घूँसा लगने से वह नास्तिक चिल्ला
उठा,""वाह भाई वा!यह भी खूब रही।जब तुमसे कोई बात न बन सकी, तो अब हाथापाई
के ओछेपन पर उतर आये हो?''आस्तिक पुरुष ने उत्तर दिया-""नहीं भाई
साहिब!मेरा यह मतलब हरगिज़ नहीं। मैं तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा
हूँ। अच्छा, तुम ही बताओ कि तुम रोते-चिल्लाते क्यों हो?''
नास्तिक बोला-""वाह!रोने-चिल्लाने की तो बात ही है तुम्हारा घूँसे से कमर में इतना दर्द हो रहा है, कि कुछ कहा ही नहीं जाता।''आस्तिक ने कहा-""अच्छा, तो तुम दर्द से चिल्ला रहे हो। किन्तु भाई!मुझे तो तुम्हारा
यह दर्द कहीं भी दिखाई नहीं देता। हाँ,ज़रा दिखाओ तो, दर्द कैसा है?'' नास्तिक ने कहा,""अरे तुम भी खूब हो,भला कहीं दर्द भी दिखाई दे सकता है,जो मैं तुम्हें दिखा दूँ?''आस्तिक ने कहा,""बस, तो फिर तुम्हारे इतराज़ का जवाब तुम्हें मिल चुका। जिस तरह दर्द या तकलीफ अनुभव होते हैं,किन्तु देखे नहीं जा सकते, इसी तरह ही ईश्वर अथवा मालिक भी अनुभव के द्वारा जाना जा सकता है। परन्तु इन स्थूलआँखों से उसे देखा नहीं जा सकता।आस्तिक पुरुष का यह उत्तर सुनकर नास्तिक लज्ज़ित हुआ और उसे मालिक के अस्तित्व का विश्वास आ गया।
नास्तिक बोला-""वाह!रोने-चिल्लाने की तो बात ही है तुम्हारा घूँसे से कमर में इतना दर्द हो रहा है, कि कुछ कहा ही नहीं जाता।''आस्तिक ने कहा-""अच्छा, तो तुम दर्द से चिल्ला रहे हो। किन्तु भाई!मुझे तो तुम्हारा
यह दर्द कहीं भी दिखाई नहीं देता। हाँ,ज़रा दिखाओ तो, दर्द कैसा है?'' नास्तिक ने कहा,""अरे तुम भी खूब हो,भला कहीं दर्द भी दिखाई दे सकता है,जो मैं तुम्हें दिखा दूँ?''आस्तिक ने कहा,""बस, तो फिर तुम्हारे इतराज़ का जवाब तुम्हें मिल चुका। जिस तरह दर्द या तकलीफ अनुभव होते हैं,किन्तु देखे नहीं जा सकते, इसी तरह ही ईश्वर अथवा मालिक भी अनुभव के द्वारा जाना जा सकता है। परन्तु इन स्थूलआँखों से उसे देखा नहीं जा सकता।आस्तिक पुरुष का यह उत्तर सुनकर नास्तिक लज्ज़ित हुआ और उसे मालिक के अस्तित्व का विश्वास आ गया।
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