Friday, August 19, 2016

खुदा की अँगुली में अँगुठी पहना दो


        चूँ  तू  करदी  जाते मुर्शिद रा कबूल।।
        हम खुदा दर जातिस आमद दम रसूल।।(मौलाना रुम साहिब)
अर्थः-जब कि तूने मुर्शिदे कामिल को मान लिया है अर्थात उनकी शरण ले ली है तो विश्वास रख कि खुदा और रसूल उसी में आ गए। मुर्शिद की ज़ात से अलग उनकी कोई हस्ती नहीं। भाव यह है कि चूंकि आम संसारी लोग सच्चाई और रूहानियत से दूर होते है। उन्हें सच्चाई की खबर तो होती नहीं। इसी कारण सच कहने वाले पर एतराज़ करते हैं।
     मालेर कोटला(हरियाणा)का किस्सा है।कुछ दिनों पहले जिस समय वहां नवाब की हकूमत थी।एक बार उस शहर में एक फकीर साहिब ने एक सुनार से कहा-कि खुदा की उंगली में अंगूठी डाल दो और अपनी उँगलीआगे कर दी।संयोगवश वहां पर बहुत से मुसलमान खड़े थे,उनको यह बात बहुत बुरी लगी। यह काफिर है इसे पकड़ो और सजा दो। बात बढ़ते बढ़ते नौबत यहां तक पहुँची कि फकीर साहिब पकड़े गए।अदालत में मुकद्दमा पेश हुआ। मौलवी और काज़ियों ने अपनी सम्मति से फतवा दे दिया कि इसे फाँसी दे दी जाय।
     फकीर साहिब बेपरवाह थे।न जीने की खुशीऔर न मरने का गम। सूली का प्रबन्ध किया गया। पूछा गया कि कोई आखिरी खाहिश है? फकीर साहिब हँसे। कहने लगे अच्छा हम नवाब से मिलना चाहते हैं। जिसने फाँसी का हुक्म दिया है।नवाब के समक्ष उसे लाया गया। फकीर साहिब ने प्रश्न किया यह दुनियाँ किस की है? नवाब साहिब ने जवाब दिया खुदा की।फकीर साहिब-""मुल्क व दौलत-माल वगैरा किसका है? ''नवाब साहिब-""खुदा का''फकीर साहिब-'' इन सब इन्सानों को किसने बनाया?''नवाब-''खुदा ने''फकीर साहिब-""यह सब किसके हुए।''नवाब-खुदा के।फकीर साहिब -यह सब जिस्म व जान किसकी हुई।'' नवाब-""खुदा की। फकीर साहिब-""जानता है तू किसका है।'' नवाब ने कहा-खुदा का। तेरीआँख,तेरा हाथ आदि किसके हैं?खुदा का। फकीर साहिब इसी तरह हरेक चीज़ हाथ,पैर कान,आँख आदि का नाम लेकर सब की बाबत प्रश्न करते रहे। नवाब जवाब देते देते थक गया।और उन्हें क्रोध आ गया।पूछा, आप क्या चाहते हैं। फकीर साहिब ने हँस कर फरमाया गज़ब करते हो जब कि यह सब कायनात खुदा की है, तुम्हारा जिस्म खुदा का है और जिस्म का एक एक अंग खुदा का ठहरा तो क्या ये बेचारी उंगली खुदा की नहीं?नवाब साहिब के होश ठिकाने हुए। मौलवी और काजी सब दंग रह गए। तुरन्त पहला हुक्म मंसूल करके रिहाई का हुक्म सुनाया गया।
इस सबका भाव और सारांश यह है कि भगवंत का अर्थ पूर्ण गुरु से है। दूसरे शब्दों में रूहानियत के सब संतसत्पुरुषों का भी यहीफरमान है कि परिपूर्ण संत सतगुरु ही साक्षात  पूर्णब्राहृ भगवंत का स्वरुप हैं और परि पूर्ण संतसदगुरु का सच्चा भक्त ही वास्तव में भगवंत का सच्चा भक्त है।

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