Tuesday, August 2, 2016

शेख सादी साहिब धन चोर ले गये


शेख सादी साहिबअपने समय में माने हुए व्यक्ति थे। फकीरों साधु-सन्तों की संगति से उन्होंने सन्तोष रूपी शिक्षा को दृढ़ता से पल्ले बाँध लिया। भगवान की कृपा से घर में धन-माल सब कुछ था परन्तु इसके लिये उन्हें अहंकार नहीं था।कोई सम्बन्धी कहता कि मियाँ!इतना क्या करोगे? उत्तर देते कि जिसका है वही सम्भाल लेगा मुझे क्या चिन्ता? शेख सादी साहिब तोअपनी मस्ती में मस्तदुनियाँ का कार्य-व्यवहार करके हुएफकीरों की संगति में समय व्यतीत करते हुए जीवन का लाभ ले रहे थे।
     कुछ समय बीता।कुछ धन सन्तों की सेवा-टहल में खर्च कर दिया और शेष को चोर चुराकर ले गए। किसी मित्र ने कहा-मियाँ! अब कैसे बसर होगा?उत्तर मिला कि जैसे पहले था वैसे अब हूँ,मेरा धन तो कहीं नहीं गया।उसीअनुरूप ही फकीरों की सेवा टहल जो पहले धन से करते थे अब तन से करने लगे। इसी पर सन्तोष था कि ऊँट तो उनके पास है जिससे आने जाने में असुविधा नहीं थी।
          जो कुंजे कनाअत में है तकदीर पर शाकिर।
          है जौक  बराबर  उन्हें कम और जियादा।।
जो सन्तोषी है,वे भाग्य पर भरोसा रखते हैं। उन्हें कम और ज्यादा सभी बराबर है।उन्हें जो मिलजाए उसी पर सब्रा करते हैं। एक बार यह घटना घटित हुई कि एक सौदागर ऊँटों पर कुछ लादकर ले जा रहा था। उसने अपना धन माल सुरक्षा की दृष्टि से एक बहुत ही बूढ़े लद्दू ऊँट पर लाद दियाऔर उस पर टूटी-फूटी काठी रख दी और उस काठी में अशर्फियों की थैली रख दी। ऐसा उसने इसलिये किया ताकि बूढ़े ऊँट पर किसी की दृष्टि न पड़े।वह सौदागर जंगल से गुज़र रहा था कि अकस्मात् युद्ध में शत्रु से लूटा माल लेकर कुछ लोगआ रहे थे, उन्होंने सौदागर से सब ऊंट व माल छीन लिए।उनमें वह बूढ़ा ऊँट भी था।सभी सरदार अन्य ऊंटों पर सवार हो गएऔर एक सरदार अभी कुछ दूर बूढ़े ऊँट पर जा ही रहा था कि उधर से शेख सादिसाहिबअपने ऊंट पर सवार मिल गए। वह ऊँट भी अच्छा था और काठी भी नई थी।सरदार ने""आव न देखा ताव''बूढ़े ऊंट से उतर कर शेख सादि साहिब के अच्छे ऊँट को छीन लियाऔरअपना बूढ़ा ऊंट उन्हें दे दिया और कहा कि चल बैठ इस ऊंट परऔर चला जा।वह सरदार शेख सादि साहिब के ऊँट को लेकर चला गया। शेख सादिसाहिब बूढ़े ऊँट को लेकरअपने घर आ गए।और कहने लगे किअच्छा हुआ परमात्मा ने अब इसकी सेवा टहल करने को दिया है।ज्यों ही ऊंट से काठी उतारकर एकओर रखने लगे कि झनझनाती स्वर्ण मोहरें थैली में से गिर पड़ींऔर ऊंट से चीथड़ों की कमानी उतारी तो ढेर धन उसमें छिपा पाया।उन्होने आकाश की ओर देखकर कहा-वाह भगवान!सच है,जिसे देता है छप्पर फाड़कर देता है।और मुझे थप्पड़ खा कर ज़बरदस्ती लेना पड़ा।भगवान जो कुछ करता हैअच्छाही करता है।

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