Friday, August 26, 2016

जो निर्भार है, वही ज्ञानी है

जो निर्भार है, वही ज्ञानी है
ऐसा हुआ कि श्री गुरु नानक देव जी एक गांव के बाहर एक कुँए के तट पर आकर ठहरे। वह गांव सूफियों का गांव था। उनका बड़ा केन्द्र था। वहां बड़े सूफी थे, गुरु थे, पूरी बस्ती ही सूफियों की थी। खबर मिली सूफियों के गुरु को, तो उसने सुबह ही सुबह गुरुनानक देव जी के लिए एक कप में भर कर दूध भेजा। दूध लबालब भरा था। एक बूंद भी और न समा सकती थी। उन्होंने पास की झाड़ी से एक फूल तोड़कर उस दूध की प्याली में डाल दिया। फूल तिर गया। फूल का वज़न क्या? उसने जगह न माँगी। वह सतह पर तिर गया। और प्याली वापस भेज दी। श्री गुरुनानक देव जी का शिष्य मरदाना बहुत हैरान हुआ कि मामला क्या है? उसने पूछा कि मैं कुछ समझा नहीं , क्या रहस्य है? यह हुआ क्या? श्री गुरु नानकदेव जी ने फरमाया, कि सूफियों के गुरु ने खबर भेजी थी कि गांव में बहुत ज्ञानी हैं, अब और जगह नहीं। मैने खबर वापस भेज दी है कि मेरा कोई भार नहीं है। मैं जगह मांगूंगा ही नहीं, फूल की तरह तिर जाऊँगा।
     जो निर्भार है वही ज्ञानी है। जिसमें वज़न है, अभी अज्ञानी है, और जब तुममे वज़न होता है तब तुमसे दूसरे को चोट पहुंचती है। जब तुम निर्भार हो जाते हो, तब तुम्हारे जीवन का ढंग ऐसा होता है कि उस ढंग से चोट पहुंचनी असंभव हो जाती है। अहिंसा अपने-आप फलती है, प्रेम अपने-आप लगता है, कोई प्रेम को लगा नहीं सकता, और न कोई करुणा को आरोपित कर सकता है। अगर तुम निर्भार हो जाओ, तो ये सब घटनाएं अपने से घटती हैं, जैसे आदमी के पीछे छाया चलती है, ऐसे भारी आदमी के पीछे घृणा, हिंसा, वैमनस्य, क्रोध व हत्या चलती है। हल्के मनुष्य के पीछे प्रेम, करुणा, दया, प्रार्थना अपने-आप चलती है इसलिए मौलिक सवाल भीतर से अंहकार को गिरा देने का है।

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