Friday, October 21, 2016

बंदगी

एक राजा की कथा है कि किसी बड़े राजा ने उसपर आक्रमण करके उसका राज्य छीन लिया। पुराने ज़माने में छोटे छोटे राज्य हुआ करते थे और बड़े राज्यों के शासकआमतौर पर या तो छोटे छोटे राजाओं से कर वसूल करते थे, या उन परआक्रमण करके उनके राज्य अपने अधिकार में ले लिया करते थे। ऐसा ही यहाँ भी हुआ।बड़े राजा ने छोटे राजा का राज्य दबा लिया। राज्य छिन जाने पर उसके मनमें संसार की असारता का गहरा प्रभाव पड़ा और वह दुनियादारी से किनारा करके जंगल में रहकर भजन-बन्दगी करने लगा।
     कुछ समय पश्चात उसकी बंदगी रंग लाई। वह एक सिद्ध महात्मा बन गया। लोग दूर दूर से उसके दर्शनों को आने लगे।आसपास उसकी बड़ी प्रसिद्धि फैल गई। और उसे बहुत माना जाने लगा। वह राजा भी जिसने उसकेराज्य को दबा लिया था उसने भी विजित राजा की प्रसिद्धि सुनी औरअपनी रानी तथा मन्त्रियों सहित दर्शन को चला। बड़ी श्रद्धा से उसने पराजित राजाअर्थात तपस्वी राजा के आगे सीस नवाया और हाथ जोड़कर विनय की,""भगवन्!आप मुझसेअपना राज्य वापिस ले लीजिये।
इसके अतिरिक्त और भी जो कुछ आप आज्ञा करें मैं उपहार के रूप में आपकी भेंट करूँ।''तपस्वी राजा ने उत्तर दिया,""महाराज! आपका बहुत बहुत धन्यवाद,जोआपने इस कदर सौजन्य प्रकट किया।राज्य की तो खैर अब मुझे कोई इच्छा नहीं रही।हाँ,यदिआप दे सकते हैं,तो मैं कुछ वस्तुयें माँगना चाहता हूँ।''विजयी राजा ने बड़े गर्व से कहा,""हाँ-हाँ?आपसंकोच त्यागकर कहिये। जो कुछ भी आप माँगेंगे, मै तुरन्त हाज़िर करूँगा।'' तपस्वी राजा ने कहा,""अच्छा! तो सुनिये, ऐसा जीवन जिसे कभी मृत्यु का खटका न हो, ऐसा धन जो स्थिर हो, ऐसा यौवन जिसे कभी बुढ़ापा नष्ट न कर सके,ऐसा सुख जिसके उपरान्त कभी दुःख नआने पावे,और ऐसी खुशी जिस पर कभी रंज या विषाद की अन्धेरी छाया न पड़ सके, बस ये पाँच वस्तुयें मुझे दरकार हैं। यदि आप दे सकते हैं,तो यही कृपा कीजिये।''विजयी राजा का सीस झुक गया।वह बोला,"'भगवन्!ये वस्तुयें तो मैं नहीं दे सकता।ये तो ईश्वर से ही मिल सकती हैं।''तपस्वी राजा ने इतने ज़ोर से अट्टहास किया कि जंगल और पहाड़ियाँ गूँज उठीं।""बस इसी बल-बूते पर दानशील बनने का दावा कर रहे थे आप?अरे नादान! ये सब वस्तुयें तू या और कोई इन्सान भी नहीं दे सकता। इसी कारण तो मैने उस लोक-परलोक के स्वामी परमेश्वर की शरण ली है।तथा यदि ये सब प्राप्त न हों, तो फिर राज्य ले लेने से भी क्या लाभ होगा? जाओ,अपना काम करोऔर मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।''
     मनुष्य की सीमाबद्ध शक्ति कर भी क्या सकती है और मालिक की असीम शक्तियाँ क्या नहीं कर सकती।यही समझनेऔर विचार करने की बात है।अज्ञानी मनुष्य आमतौर पर यह सोचा करते हैं कि हूँह। मालिकहमें खाने के लिये देने थोड़े ही आवेगा।लेकिन यही तो उनकी भूल है। मालिक तो उऩ्हें भी भोजन और सुख की सब सामग्री देता है, जो कभी भूलकर भी उसकी याद नहीं करते।फिर जो भक्त सबका भरोसा त्याग कर उसी प्रभु का ही भरोसा मन में दृढ़ कर लेगा और उसकी याद मे दिलो-जान से लगा होगा क्या वे प्रभु उसकी सँभाल और देखभाल न करेंगे? वह मालिक अपने भक्तों का दुःख दर्द बटाने और उनकी सँभाल करने को सदा प्रस्तुत रहते  हैं।

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