Wednesday, October 26, 2016

तुम कौन हो लिखकर लाओ


गुरुजिएफ के पास जब पहली दफा आस्पेन्स्की गया तो गुरुजिएफ ने उससे कहा, एक कागज़ पर लिख लाओ तुम जो भी जानते हो, ताकि उसे मैं संभाल कर रख लूँ उस सम्बन्ध में कभी चर्चा न करेंगे। क्योंकि जो तुम जानते ही हो,बात समाप्त हो गयी।आस्पेन्स्की को कागज़ दिया। आस्पेन्सकी बड़ा पंडित था।और गुरुजिएफ से मिलने के पहले एकबहुत कीमती किताब जो लिख चुका था जो एक महत्वपूर्ण किताब थी।और जब गुरुजिएफ के पासआस्पेन्सकी गया,तो एक ज्ञाता की तरह गया था। जगतविख्यात आदमी था।गुरजिएफ को कोई जानता भी नहीं था। किसी मित्र ने कहा था गांव में,फुरसत थी,आस्पेन्सकी ने सोचा कि चलो मिल लें। जब मिलने गया तो गुरजिएफ कोई बीस मित्रों के साथ चुपचाप बैठा हुआ था।आस्पेन्स्की भी थोड़ी देर बैठा, फिर घबड़ाया। न तो किसी ने परिचय कराया,उसका कि कौन है,न गुरजिएफ ने पूछा कि कैसेआए हो। बाकी जो बीस लोग थे, वह भी चुपचाप बैठे थे तो चुपचाप ही बैठे रहे। पांच-सात मिनट के बाद बेचैनी बहुत आस्पेन्स्की की बढ़ गयी। न वहां से उठ सके,न कुछ बोल सके।आखिर हिम्मत जुटाकर उसने कोई बीस मिनट तक तो बर्दाश्त किया, फिर उसने गुरजिएफ से कहा कि माफ करिये, यह क्या हो रहा है?आप मुझसे यह भी नहीं पूछते कि मैं कौन हूँ?गुरजिएफ ने आँखें उठाकर आस्पेन्सकी की तरफ देखा और कहा, तुमने खुद कभी अपने से पूछा है कि मैं कौन हूँ?और जब तुमने ही नहीं पूछा, तो मुझे क्यों कष्ट देते हो? या तुम्हें अगर पता हो कि तुम कौन हो, तो बोलो। तो आस्पेन्स्की के नीचे से ज़मीन खिसकती मालूम पड़ी। अब तक तो सोचा था कि पता है कि मैं कौन हूँ।सब तरफ से सोचा, कहीं कुछ पता न चला कि मैं कौन हूँ।
     तो गुरजिएफ ने कहा, बेचैनी में मत पड़ों, कुछ और जानते होओ, उस सम्बन्ध में ही कहो। नहीं कुछ सूझा तो गुरजिएफ ने एक कागज़ उठाकर दिया और कहा, हो सकता है संकोच होता हो,पास के कमरे में चले जाओ। इस कागज पर लिख लाओ जो जो जानते हो। उस सम्बन्ध में फिर हम बात न करेंगे और जो नहीं जानते हो, उस सम्बन्ध में कुछ बात करेंगे।आस्पेन्सकी कमरे में गया।उसने लिखा है,सर्द रात थी,लेकिन पसीना मेरा माथे से बहना शुरू हो गया पहली दफा मैं पसीने पसीने हो गया।पहली दफे मुझे पता चला कि जानता तो मैं कुछ भी नहीं हूँ।यद्यपि मैने ईश्वर के सम्बन्ध में लिखा है,आत्मा के सम्बन्ध में लिखा है,लेकिन न तो मैं आत्मा को जानता हूँ,न मैं ईश्वर को जानता हूँ। वह सब शब्द मेरी आँखों में घूमने लगे। मेरी ही किताबें मेरे चारों तरफ चक्र काटने लगीं। और मेरी ही किताबें मेरा मखौल उड़ाने लगीं,और मेरे ही शब्द मुझसे कहने लगे, आस्पेन्सकी जानते क्या हो?और तब इसने वह कोरा कागज़ ही लाकर गुरजिएफ के चरणों में रख दियाऔर कहा,मैं बिलकुल कोरा हूँ जानता कुछ नहीं हूँ, अब जिज्ञासा लेकर उपस्थित हुआ हूँ वह जो कोरा कागज़ था, वह आस्पेन्स्की की समिधा थी।जब भी कोई पूरा विनम्र भाव से----विनम्र भाव का अर्थ है, पूरे अज्ञान के बोध से गुरु के पास सीखने जाए।

3 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’अहिंसक वीर क्रांतिकारी को नमन : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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