Monday, June 13, 2016

भेडें सम्मोहित कर रखी थीं


एक जादूगर ने भोजन के लिए बहुत-सी भेड़ें पाल रखी थीं। उस जादूगर ने उन भेड़ों को बेहोश करके, सम्मोहित करके, हिपनोटाईज़ करके यह कह दिया था कि तुम भेड़ें नहीं हो। इससे पहले भेड़ें हमेशा भयभीत रहा करती थीं कि उनको खिलाया पिलाया जायेगा और फिर अंततः काट दिया जायेगा। उस जादूगर ने उन्हें बेहोश करके कह दिया कि तुम भेड़ हो ही नहीं। तुम तो सिंह हो, भेड़ नहीं। उनके चित्त में यह बात बैठ गई। उस दिन से वे अकड़ कर जीने लग गर्इं। उस दिन से उन्होने यह बात भुला दी कि उन्हें काटने के लिए पाला जा रहा है। जब उनमें से एक भेड़ काट दी जाती थी तब बाकी रह गर्इं भेड़ें सोचती थीं कि वह तो भेड़ थी हम तो सिंह हैं। सब सोचती कि मैं नहीं काटी जाने वाली हूँ। रोज भेड़ें कम होती जाती थीं लेकिन हर भेड़ यह सोचती थी कि दूसरी तो भेड़ थी, इसलिए काटी गई और मैं ? मैं तो सिंह हूँ, मैं काटी जाने वाली नहीं हूँ। उस जादूगर के घर उसका एक मित्र मेहमान हुआ तो उसने पूछा कि हम भी भेड़ें पालते हैं, हम भी उनको काटते हैं, और उनके मांस को बेचते हैं। लेकिन हमारी भेड़ें तो बड़ी भयभीत और परेशान रहती हैं। तुम्हारी भेड़ें तो बड़ी शान से घूमती हैं। आखिर बात क्या है? उस जादूगर ने कहा मैने एक तरकीब काम में लाई है। उनको बेहोश करके मैंने कह दिया है कि तुम भेड़ नहीं हो। इसलिए वे मौज में घूमती रहती है। उनको भागने का, भयभीत होने का अब मुझे कोई डर नहीं है और जब एक भेड़ कटती है तो बाकी भेड़ें सोचती हैं कि वह भेड़ थी, मैं भेड़ नहीं हूँ। इसी प्रकार हर आदमी यह समझता है कि मैं मरने वाला नहीं हूँ।

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