Thursday, June 23, 2016

जो भृगु मारी लात


          क्षमा बड़न  को  चाहिये, छोटन को उतपात।।
          कहा विस्नु को घटि गये, जो भृगु मारी लात।।
बड़प्पन क्षमाशील होने में है।ओछे,दुर्जन,और खल पुरुष तो उपद्रव करते ही रहते हैं। श्रेष्ठ पुरुष उनकी चंचलताओं पर ध्यान हीं नहीं देते। यदि महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु जी की छाती में लात मार दी तो उनका क्या घट गया? उनके विष्णु पद की महत्ता सौगुनी और बढ़ गई-भृगु स्वयं उनकी ऐसी विराट् उदारता को देख कर मुग्ध रह गये।
     एक बार कुछ ऋषि एक स्थान पर बैठे हुए विचार कर रहे थे कि ब्राहृा-विष्णु और महेश में सबसे श्रेष्ठ कौन है? उस समय महर्षि भृगु जी ने कहा कि हम अमरावती जाते हैं और उन तीनों की श्रेष्ठता का पता लगाते हैं। भृगु जी पहले गये ब्राहृ लोक में-उस समय श्री ब्राहृा जी वेद पाठ में लगे थे। वीणा पाणि सरस्वती समीप में बैठी थीं। महर्षि ने द्वार खटखटाया, ब्राहृा जी की एकाग्रता में बाधा आ गई और वे तिलमिला से उठे। आगे थे महर्षि भृगु-वे तुरन्त भाँप गये कि ब्राहृा जी ने मेरेआने को बुरा मना लिया है। महर्षि इसे अपना अनादर समझकर बिना कुछ कहे शिवलोक की ओर बढ़ गये।
     श्रीमहादेव जी योगमुद्रा में समासीन थे।भृगु जी ने शिव भगवान के द्वार पर दस्तक दी। महादेव जी को किसी का ध्यान अवस्था में आकर विक्षेप पैदा करना रुचा नहीं। वे व्याकुल से हो गये।और वहीं से पूछ लिया कि द्वार पर कौन है?भृगु के उत्तर मिलने पर यही कहा कि यह द्वार अब शिवजी का नहीं-यह कुटिया रूद्र महादेव की अर्थात् संहारकारी की है-त्रिशूल हमारा अस्त्र है। आपका इस समय पर आना हमें बुरा लगा है। भृगु ऋषि वहां से भी खिन्न होकर विष्णु पुरी को चल दिये।
     क्षीरसागर में पौढ़े हुए थे भगवान् श्री विष्णु-लक्ष्मी उनके चरण पलोट रही थी। द्वार पहले से ही खुला था। महर्षि भृगु को कोई आवश्यकता न पड़ी दरवाज़ा थपथपा कर अन्दर से आज्ञा की, सीधे ही अन्दर चले गये और भगवान नारायण के वक्षःस्थल के बाएं भाग पर ज़ोर से लात मार दी। लात लगते ही भगवान मुरारि उठ बैठे और उन महर्षि का चरण अपने कोमल कर कमलों से लगे सहलाने। फिर मुधर वाणी में बोले-""पूज्य देव! मेरा वक्षःस्थल तो बड़ा कठोर था और आप ब्राहृदेव के चरण अत्यन्त कोमल हैं। कहीं आप को चोट तो नहीं लगी? आप मुझे क्षमा कर दें।बड़ा ही उपकार कियाआपने जो मेरे ह्मदयदेश को अपने चरण आघात से पवित्र कर दिया।मैंआज से सदा के लियेआप का चरण-चिन्ह अपने वक्षःस्थल पर आभूषण की भांति सुसज्जित रखूँगा।भृगु जी तो क्षमा की ही कसौटी पर तीनों देवताओं की परीक्षा लेने गये थे।परन्तु भगवान हरि कीअगाध क्षमाशीलता को निहार कर ऋषि चकित रह गयेऔर भगवान के चरणों में लोटकर लगे प्रार्थना करने। ""नाथ!आप चाहते तो मुझे कड़े से कड़ा दण्ड प्रदान कर सकते थे। आप ने उसकी जगह कैसा विलक्षण व्यवहार किया धन्य हैं आप और प्रशंसनीय है आप की विशाल उदारता।
     इस प्रकार भगवान विष्णु ने सारे संसार को क्षमा का ऐसा अनुपम पाठ पढ़ा दिया और अपने आचरण से बता दिया कि मानव का सौन्दर्य क्षमा में ही है।

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