Thursday, June 16, 2016

मृत्यु

गवान बुद्ध सरावस्ती नगर के बाहर ठहरे थे। उनके निकट ही नदी तट पर एक युवा वणिक भी ठहरा था। उसके पास पाँच सौ बैलगाड़ियाँ थीं। जो बहुमूल्य वस्त्रों और अन्य प्रसाधन साधनों से भरी हुई थीं। वह सरावस्ती में अपना सामान बेच कर खूब कमाई कर रहा था। उसके पास ही भगवान ठहरे थे लेकिन अब तक उसने उनकी ओर ध्यान भी नहीं दिया था। शायद दिखाई तो पड़े ही होंगे। हज़ारों भिक्षुओं का वहाँ निवास था। न दिखाई पड़े हों ऐसा तो नहीं हो सकता था। लेकिन उसके मन से संगति नहीं थी। जहाँ धन की यात्रा पर निकला हो उसका ध्यान की तरफ ध्यान नहीं जाता। जो अभी महत्वकाँक्षा से भरा हो, उसे सन्यासी दिखाई नहीं पड़ता। जिसके मन पर संसार के मेघ घिरे हो, उसे निर्वाण का प्रकाश दिखाई नहीं पड़ता। आच्छादित अपने ही मेघों में रहा होगा। भगवान पास ही ठहरे थे लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया था। या कभी कभार ध्यान चला भी गया हो। उसके बावजूद सोचा होगा पागल हैं, तो सोचा होगा इन सबको क्या हो गया? तो सोचा होगा कि लोग कैसे कैसे व्यर्थ की बातों में उलझ जाते हैं। और हज़ार दलीलें दी होंगी अपने मन को। कि मैं भी भला मैं ही स्वस्थ, मैं ही तर्कयुक्त।
     एक दिन नदी पर टहलता हुआ, भविष्य की बड़ी बड़ी कल्पनायें कर रहा था। सोचता था कि धन्धा यदि ऐसा ही चलता रहा, तो वर्ष भर में ही लखपति हो जाऊँगा। फिर विवाह करुँगा। अनेक स्त्रियों के सुन्दर चित्र उसकी आँखों में घूमने लगे। और ऐसा महल बनाऊँगा, वसन्त के लिये अलग हेमन्त के लिये अलग,वर्षा ऋतु के लिये अलग, और यह करुँगा, वह करुँगा। और जब ऐसे पूरे शेखचिल्ली-पन में खोया था और कल्पनाओं के लड्डूओं का भोग कर रहा था,तब भगवान ने उसे देखा और वे हँसे। भगवान बैठे हैं एक वृक्ष के तले। उनके पास ही बैठा है भिक्षुआनन्द। अकारण, बिना किसी बात के, बिना किसी प्रकट आधार के, भगवान को हँसते देखकर आनन्द चकित हुआ। उसने पूछा, भगवान! आप हँसते हैं न मैने कुछ कहा, न मैने कुछ कहा, न यहाँ कुछ हुआ। अकारण क्यों हँसते हैं? किस कारण हँसते हैं? किस बात पर हँसते हैं? भगवान ने कहा, आनन्द! उस युवा को देखते हो दूर नदी के तट पर? उसके चित्त के कल्पना तरंगों को देखकर ही मुझे हँसी आ गई। वह लम्बी योजनाएं बना रहा है, किन्तु उसकी आयु केवल सप्ताह भर की और शेष है। मृत्यु द्वार पर दस्तक दे रही है। पर उसको अपनी वासनाओं के कोलाहल के कारण कुछ भी सुनाई नहीं पड़ता। उसकी मूर्छा पर मुझे हँसी भीआती है और दया भी। भगवान की आज्ञा लेकर आनन्द उस युवक के पास गये। और उसे सन्निकट मृत्यु से अवगत कराया। मृत्यु की बात सुनते ही वह थर थर काँपने लगा। खड़ा था भयभीत होकर बैठ गया।  अभी सुबह ही थी, शीतल हवा बहती थी। सब शान्त था। उसके माथे पर पसीने की बूँदे झलक आर्इं। भूल गया सुन्दर स्त्रियों को, भूल गया संगमरमरी महल, भूल गया हेमन्त वसन्त, भूल गया सब। मृत्यु सामने खड़ी हो, मृत्यु का एक दफा स्मरण भी आ जाये। तो सारे जीवन से प्राण निकल जाते हैं। इस जीवन में कुछ अर्थ नहीं रह जाता। इस जीवन में अर्थ तभी तक है जब तक तुमने मृत्यु को नहीं देखा। जब तक तुमने मृत्यु का विचार नहीं किया। जब तक मृत्यु का बोध तुम्हें नहीं हुआ,तब तक इस जीवन का खेल है। तभी तकइन सपनों को फुलाये जाओ। तैराये जाओ नावें कागज़ की। बनाये जाओ कागज़ के महल। लेकिन जैसे ही मृत्यु का समरण आ जाएगा, सब ढह जाता है। बड़े उसके स्वपन थे, अभी युवा था. बड़ी उसकी कामनायें थीं, जीवेष्णायें थी। बड़ी उसका संसार फैलाने का मन था, सब भूमिसात हो गया, सब खण्डहर हो गया। जो भवन कभी बने ही नहीं थे सब खण्डहर हो गये। और जो सुन्दर स्त्रियां कभी मिली ही नहीं थी, वे तिरोहित हो गई। वे मन पे तैरते हुये इन्द्रधनुष से ज्यादा न थीं। मौत ने एक झपट्टा मारा, और सब व्यर्थ हो गया, वो युवक बैठ कर रोने लगा। आनन्द ने उससे कहा, युवक उठ। मौत पर बात समाप्त नहीं हो जाती। भगवान के चरणों में चल। मौत के पार भी कुछ है। जीवन मौत पर समाप्त नहीं होता। असली जीवन मौत के बाद ही शुरु होता। औओर धन्यभागी हैं वे जिन्हें इस जीवन में मौत दिखाई पड़ जाये तो इसी क्षण दूसरा जीवन शुरु होजाता है। सन्यास का और कुछ अर्थ बी नहीं है। जीते जी मौत से प्रत्यक्ष साक्षात् हो गया। जिसे येदिखाई पड़ गया कि मरना होगा।  कि मृत्यु आती है क्या फर्क पड़ता है कि सात दिन बाद आती है, कि सात वर्ष बाद आती है, कि सत्तर वर्षबाद आती है। मृत्यु है, ये तीर चुभ जाये ह्मदय में, तो संसार व्यर्थ हो जाता है। आनन्द नेउसे संभाला। और कहा, हार मत थक मत। मौत से कुछ भी मिटता नहीं, मौत से वही मिटता है जो झूठ था। मौत से वही मिटता है जो भ्रामक था, मौत से सिर्फ सपने मिटते हैं सत्य नहीं मिटता, घबरा मत। उठ। वो युवक भगवान के चरणों में आया। मृत्यु सामने खड़ी हो तो बुद्ध के अतिरिक्त और कोई मार्ग भी तो नहीं। मृत्यु न होती तो शायद कोई बुद्धों के चरणों जाता ही न। मृत्यु न होती तो मन्दिर न होते, मस्जिद न होती , गुरुद्वारे न होती। मृत्यु जगाती है, मृत्यु अलार्म का काम करती है। मृत्यु न हो तो किसलिये प्रार्थना करेगा। कौन प्रार्थना करेगा, कौन ध्यान करेगा।अगर तुम मृत्यु को ठीक से समझ लोउसी से तुम्हारे जीवन में अमूल्य क्रान्ति हो जायेगी। मृत्यु जगाती है, जीवन सुला देता है। जीवन में तो तुम सोये सोये चलते रहते हो। मौत आती है झकझोर देती है। झंझावात की तरह आती है। विचार की, वासना की, धूल झड़ जाती है। तुम चौंक कर खड़े हो जाते हो, पुनर्वीचार करना होता है। फिर से सोचना पड़ता है। फिर से जीवन के आधार रखने होते हैं। किसी दूसरे जीवन के आधार रखने होते हैं जिसे मौत न मिटा सके। उस जीवन का नाम ही मोक्ष है। संसार और निर्वाण काइतना ही अर्थ है। संसार, ऐसा जीवन जिसे मौत छीन लेती है। निर्वाण ऐसा जीवन जिसे मौत नहीं छीन पाती। संसार ऐसा जीवन आज नहीं तोकल हाथ से जायेगा हीष उसको बनाने में जितना समय लगाया व्यर्थ गया। उतने में जीतनी रातें और दिन खोये व्यर्थ गये। एक ऐसा भी जीवन है जहाँ मृत्यु असमर्थ है। जहाँ मृत्यु का कोई प्रवेश नहीं। वही निर्वाण का जीवन है।


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