Tuesday, June 21, 2016

अहंकार की खूंटी


   कौन सी चीज़ है जो हमें बाँधे है जिसके कारण हम पशु हो जाते हैं? छोटी सी कहानी, शायद इशारा ख्याल में आ सके कि कौन सी चीज़ हमें बाँधे हुए है, कौन सी चीज़ के इर्द गिर्द हम जीवन भर घूमते हैं और नष्ट हो जाते हैं। कुछ ऐसी चीज़ है, जिसके पीछे हम पागल की तरह चक्कर लगाते हैं और व्यर्थ नष्ट हो जाते हैं।
     एक जंगल के पास एक छोटा सा गाँव था। और एक दिन सुबह एक सम्राट शिकार खेलने में भटक गया और उस गांव में आया। रात भर का थका मांदा था और उसे भूख लगी थी। वह गाँव के पहले ही झोंपड़े पर रुका और उस झोंपड़े के बूढ़े आदमी से कहा, क्या मुझे दो अण्डे उपलब्ध हो सकते हैं। थोड़ी चाय मिल सकती है? उस बूढ़े आदमी ने कहा ज़रूर, स्वागत है आपका। आइये। वह सम्राट बैठ गया उस झोंपड़े में। उसे चाय और दो अण्डे दिये गये। नाश्ता कर लेने के बाद उसने पूछा कि इन अण्डों के दाम कितने हुए। उस बूढ़े आदमी ने कहा, ज्यादा नहीं, केवल सौ रूपये। सम्राट तो हैरान हो गया। उसने बहुत महँगी चीज़ें खरीदी थी, लेकिन कभी सोचा भी नहीं था कि दो अण्डों के दाम भी सौ रूपये हो सकते हैं। उस सम्राट ने उस बूढ़े आदमी को पूछा, क्या इतना कठिन है अण्डे का मिलना यहाँ? वह बूढ़ा आदमी बोला, नहीं। अण्डे तो बहुत मुश्किल नहीं है, बहुत होते हैं, लेकिन राजा मिलना बहुत मुश्किल है। राजा कभी कभी मिलते हैं। उस सम्राट ने सौ रुपये निकालकर उस बूढ़े को दे दिये और अपने घोड़े पर सवार होकर चला गया।
       उस बूढ़े की औरत ने कहा, कैसा जादू किया तुमने कि दो अण्डे के सौ रुपये वसूल कर लिये। क्या तरकीब थी तुम्हारी? उस बूढ़े ने कहा, मैं आदमी की कमज़ोरी जानता हूँ। जिसके आस पास आदमी जीवन भर घूमता है वह खूँटी मुझे पता है। और खूँटी को छू दो और आदमी एकदम घूमना शुरु हो जाता है। मैने वह खूँटी छू दी और राजा एकदम घूमने लगा। उसकी औरत ने कहा, मैं समझी नहीं, कौन सी खूँटी? कैसा घूमना? उस बूढ़े ने कहा, तुझे मैं एक और घटना बताता हूँ अपनी ज़िन्दगी की। शायद उससे तुझे समझ में आ जाये। जब मैं जवान था तो मैं एक राजधानी में गया। मैने वहां एक सस्ती सी पगड़ी खरी़दी जिसके दाम पाँच रूपये थे। लेकिन पगड़ी बड़ी रंगीन और चमकदार थी। जैसा कि सस्ती चीज़ें हमेशा रंगीन और चमकदार होती हैं, जहां बहुत रंगीनी हो और बहुत चमक हो, समझ लेना भीतर सस्ती चीज़ होनी ही चाहिए। सस्ती थी लेकिन तब भी बहुत चमकदार थी। मैं उस पगड़ी को पहनकर सम्राट के दरबार में पहुँच गया। सम्राट की आँख एकदम से उस पगड़ी पर पड़ी। क्योंकि दुनियाँ में ऐसे लोग बहुत कम हैं जो कपड़े के अलावा कुछ और देखते हों। आदमी को कौन देखता है? आत्मा को कौन देखता है? पगड़ियां भर दिखाई पड़ती हैं। उस सम्राट की नज़र एकदम पगड़ी पर आ गई और उसने कहा, कितने में खरीदी है? बड़ी सुन्दर, रंगीन है। मैने उस सम्राट से कहा, पूछते हैं कितने में खरीदी है? पाँच सौ रूपये खर्च किये हैं। इस पगड़ी के लिए। सम्राट तो एकदम हैरान हो गया लेकिन इससे पहले कि सम्राट कुछ कहता, वज़ीर ने उसके सिंहासन के पास झुक कर सम्राट के कान में कुछ कहा, कि सावधान। आदमी धोखेबाज़ मालूम होता है। चार पाँच रूपये की पगड़ी के पाँच सौ दाम बता रहा है, बेइमान है। लूटने के इरादे हैं। उस बूढ़े ने अपनी पत्नी को कहा, मैं फौरन समझ गया कि वज़ीर क्या कह रहा है। जो लोग किसी को लूटते रहे हैं वे दूसरे लूटने वाले से बड़े सचेत हो जाते हैं। लेकिन मैं भी हारने को राज़ी नहीं था। मैं वापिस लौटने लगा। मैने उस सम्राट को कहा कि मैं जाऊँ? क्योंकि मैने जिस आदमी से यह पगड़ी खरी़दी है उसने मुझे यह वचन दिया है कि इस पृथ्वी पर एक ऐसा सम्राट भी है जो इस पगड़ी के पाँच हज़ार भी दे सकता है। मैं उसी सम्राट की खोज में निकला हुआ हूँ। तो मैं जाऊँ? आप वह सम्राट नही हैं। यह राजधानी वह राजधानी नहीं है। यह दरबार वह दरबार नहीं है, जहाँ यह पगड़ी बिक सकेगी। लेकिन कहीं बिकेगी, मैं जानता हूँ।
      उस सम्राट ने कहा, पगड़ी रख दो और पाँच हज़ार रूपये ले लो। वज़ीर बहुत हैरान हो गया। जब मैं पाँच हज़ार रूपये लेकर लौटने लगा, दरवाज़े पर वज़ीर मुझे मिला और कहा हद कर दी। हम भी बहुत कुशल हैं लूटने में लेकिन यह तो जादू हो गया। मामला क्या है? तो मैने वज़ीर के कान में कहा कि तुम्हें पता होगा कि पगड़ियों के दाम कितने होते हैं, लेकिन मुझे आदमियों की कमजोरियों का पता है। मुझे उस खूँटी का पता है जिसको छू दो और आदमी एकदम घूमने लगता है।
आप पहचान गये होंगे आदमी किस खूँटी से बँधा है। अहंकार के अतिरिक्त आदमी के जीवन में और कोई खूँटी नहीं है। और जो अहंकार से बँधा है वह और हज़ार तरह से बँध जाएगा। और जो अहंकार से मुक्त हो जाता है वह और सब भाँति भी मुक्त हो जाता है। एक ही स्वतंत्रता है जीवन में, एक ही मुक्ति है, एक ही मोक्ष है, और एक ही द्वार है प्रभु का, और वह है अहंकार की खूँटी से मुक्त हो जाना। एक ही धर्म है, एक ही प्रार्थना है, एक ही पूजा है, और वह है अहंकार से मुक्त हो जाना। एक ही मन्दिर है, एक ही मस्जिद है, एक ही शिवालय है। जिस ह्मदय में अहंकार नहीं वही मन्दिर है, वही मस्जिद है, वही शिवालय है। जीवन को जीने के दो ही ढंग है या तो अहंकार के इर्दगिर्द जियो या निरहंकार के। जो अहंकार से बँधा है वह पृथ्वी से बँधा रह जाता है। और निरहंकार में जो उठते हैं आकाश उनका हो जाता है। जो क्षुद्र से मुक्त होता है वह विराट से संयुक्त हो जाता है। जो क्षुद्र से बँधा है वह विराट से वंचित हो जाएगा। और जो क्षुद्र से मुक्त हो जाता है वह विराट में प्रविष्ट हो जाता है।

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