Thursday, March 10, 2016

पद में कोई सार नहीं


अमेरिका का प्रेसीडेन्ट हुआ, बहुत महत्वपूर्ण आदमी-कूलिज।वह एक दफा चुनाव लड़ा प्रेसीडेन्ट हो गया।बहुत प्यारा था लोगों को।राजनितिज्ञ जैसा आदमी न था, साधू पुरुष था,बड़ा कम बोलता था। शब्द निकालने उससे मुश्किल थे,मौन और शान्त रहने वाला आदमी था। एक दफे एक महिला ने शर्त लगा ली कि आज कूलिज आ रहा है भोजन पर, तो मैं उससे कम-से-कम चार शब्द निकलवा लूँगी। बड़ी देर वह बात करती रही।कूलिज चुप रहा,आखिर उसने कहा, कुछ तो बोलो, कुछ को कहो। कूलिज ने कहा,""मुझे कुछ पता नहीं है।''(आई डोन्ट नो) तीन शब्द बोला। चार भी न निकलवा पायी।
     एक दिन सुबह-सुबह कूलिज घूम रहा था अपने भवन के बाहर-व्हाइट हाऊस के बाहर।एक अजनबीआदमी ने उससे पूछा कि यहाँ कौन रहता है?उसने कहा,यहां कोई रहता नहीं है। लोग आते है और जाते हैं। यह घर नहीं, सराय है। उसआदमी को तो पीछे पता चला कि वह खुद व्हाहट हाऊस में रहता है। अमेरिका का प्रेसीडेंट है। ऐसा आदमी था। लेकिन पहला सूत्र पूरा हो गया तो मित्रों ने,अऩुयायियों ने कहा कि आप फिर खड़े हो जाये, चुनाव निश्चित है। उसने कहा कि अब नहीं। क्यों? उसने बड़ी अदभुत बात कही। उसने कहा कि ""नो फरदर चांसेस आफ प्रोमोशन। हो गये प्रेसीडेन्ट अब आगे वहां कोई उपाय नहीं और ऊपर जाने का। अब क्या सार है?
     जान लया कि यह पद भी तृप्त न करेगा। जो भी तुम पा लोगे, तृप्ति न होगी। परमात्मा से पहले कोई तृप्ति नहीं है क्योंकि वह तुम्हारा स्वभाव है। मन का स्वभाव अभाव को देखना है। तो जो तुम्हारे पास होता है वह दिखाई नहीं पड़ता है, जो तुम्हारे पास नहीं होता है, वही दिखाई पड़ता है। तुम्हारे पास अगर पचास हज़ार रुपये हैं तो वे दिखाई न पडेंगे। जो तुम्हारे पास नहीं है, वे दिखाई पड़ेंगे। मन अभाव में जीता है। इसलिए तो मन सदा पीड़ित रहता है। अभाव में कोई कैसे आनंद से जी सकता है? आनंद से जीने का रास्ता तो भरे में जीना है।

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