Tuesday, March 8, 2016

छत्त से कूदना चाहता था उसे रोका


    एक महानगरी में सौ मन्ज़िल एक मकान के ऊपर,सौंवीं मन्ज़िल से एक युवक कूद पड़ने की धमकी दे रहा था। उसने अपने कमरे के सब द्वार बन्द कर रखे थे। बालकनी में खड़ा था,सौवीं मन्ज़िल से कूदने के लिए तैयार,आत्महत्या करने को।उससे नीचे की मन्ज़िल पर खड़े होकर लोग उससे प्रार्थना कर रहे थे कि आत्महत्या मत करो, रुक जाओ। यह क्या पागलपन कर रहे हो?लेकिन वह किसी की सुनने को राज़ी नहीं। तब एक बूढ़े आदमी ने उस से कहा, हमारी बात मत सुनों,लेकिन अपने माँ बाप का ख्याल करो कि उन पर क्या गुज़रेगी। उस युवक ने कहा,न मेरा पिता है न मेरी माँ है।वे दोनों मुझसे पहले ही चल बसे।बूढ़े ने देखा कि बात तो व्यर्थ हो गयी। तो उसने कहा, कम से कम अपनी पत्नी का स्मरण करो,उस पर क्या बीतेगी?उस युवक ने कहा,मेरी कोई पत्नी नहीं मैं अविवाहित हूँ। उस बूढ़े ने कहा,कम से कम अपनी प्रेयसी का ख्याल करो। किसी को प्रेम करते होगे, उस पर क्या गुज़रेगी? उस युवक ने कहा, प्रेयसी!मुझे प्रेम से घृणा है। स्त्री को मैं नर्क का द्वार समझता हूँ। मैं किसी स्त्री को प्रेम नहीं करता।मुझे कूद जाने दो।अंतिम बात रह गयी थी कहने को। उस बूढ़े ने कहा, कूदने के पहले एक बात यह सोच लो, किसी की फिक्र मत करो। लेकिन अपनी तो फिक्र करो। अपना जीवन नष्ट कर रहे हो? उस युवक ने कहा, काश! मुझे पता होता कि मैं कौन हूँ तो शायद नष्ट करने की बात ही न आती। लेकिन मुझे यह भी पता नहीं कि मैं कौन हूँ।
     पता नहीं वह युवक कूद गया या नहीं कूद गया।लेकिन उस युवक ने यह कहा कि मुझे यह भी पता नहीं कि मैं कौन हूँ। बचकर क्या करूँगा। जीवित रहकर भी क्या करूँगा? जिस जीवन में यह भी पता न हो कि हम कौन हैं,उस जीवन का मुल्यऔर अर्थ क्या रह जाता है? हम सब जीवन में करीब करीब ऐसी ही हालत में खड़े हैं जहाँ हमें कोई भी पता नहीं कि हम कौन है। अपने होने का ही कोई बोध नहीं है। जीते हैं, लेकिन जीवन से कोई साक्षात्कार नहीं हुआ।श्वांस लेते है,चलते हैं,उठते हैं, बैठते हैं, फिर एक दिन समाप्त हो जाते हैं लेकिन ज्ञान नहीं हो पाता कि कौन था जो जन्मा,कौन था जो जिया, कौन था जो समाप्त हो गया। इतने अज्ञान से भरे हुए जीवन में कोई अर्थ,कोई प्रयोजन,कोई सार्थकता, कोईआनन्द हो सकता है?नहीं हो सकता है।इसीलिये मनुष्य इतना उदास इतना चिंतित,इतना भयभीत, इतना दुःखी इतना विपन्न मालूम पड़ता है। अपने आप की पहचान हो जाए तभी मनुष्य सुखी हो सकता है।

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