Tuesday, March 1, 2016

फकीर को सोने का पात्र दिया

एक बहुत एदभुत फकीर हुआ नागार्जुन। वह एक नगर से गुज़र रहा है उस नगर की रानी उसका बड़ा आदर करती है। उसने उसको सोने के पात्र में जिसपर हीरा जड़े थे भोजन करायाऔर कहा ये लकड़ी का पात्र फेंक दो और ये सोने का पात्र ले जाओ।इसकी लाखों की कीमत होगी। नागार्जुन ने वह सोने का पात्र ले लियाऔर चल पड़ा।रानी थोड़ा चकित हुई क्योंकि उसने सोचा था त्यागी है कहेगा मैं छू नहीं सकता सोने को। हम त्यागी को सोने से ही पहचानते हैं जब तक वह यह न कहे हम छू नहीं सकते सोने को। जब कोई त्यागी कहता है यह सब मिट्टी है हम नहीं छूते। लेकिन मिट्टी को रोज़ छूता है सोने को इन्कार करता है। सोना अगरमिट्टी है तो बे फिक्री से छुओ।लेकिन वह कह रहा है सोना मिट्टी है उसको सोना, सोना दिखाई पड़ रहा है। उस रानी ने कहा, अरे
आपने मना नहीं किया? कहना था कि यह सोने का पात्र है। फकीर ने कहा कैसा सोने का पात्र?रानी ने कहा मैने लाखों रुपये खर्च किये हैं। फकीर ने कहा,वह तेरी नासमझी होगी। तू जाने तेरा काम जाने। मुझे क्या मतलब?मुझे इसमें रोटी खानी है। पात्र किसी का भी हो मुझे रोटी से मतलब है।इससे ज्यादा मुझे मतलब नहीं पात्र लकड़ी का है,सोने का है काहे का है वह तेरा हिसाब होगा।इसमें डाल कर हम दाल रोटी खा लें। होगा सोने का उनके लिये होगा जिनको सोने का मतलब होगा। फकीर चला गया।सोने का पात्र,हीरा जड़े हैं वे चमकते हैं धूप में।गाँव के एक चोर को दिखाई पड़ गया। उस चोर ने कहा हैरानी है हम मरे जाते हैं परेशान हैं न हीरे मिलते हैं न सोना यह नंगा आदमी है इसको कहाँ से इतना बढ़िया पात्र मिल गया।चोर उसके पीछे हो लिया। फकीर गाँव के बाहर मरघट में ठहरा हैएक टूटे खण्डहर में।उसने सोचा मालूम होता है इस पात्र के पीछे कोई आ रहा है। यह दुनियाँ बड़ी अज़ीब है आदमियों के पीछे कोई नहीं आता हाथ में पात्र क्या है यह सवाल है आत्मा की तो कोई इज़्ज़त नहीं कीमत नहीं।वह फकीरअन्दर गया सोचा नाहक यह बेचारा भरी दोपहरी में इतनी दूर आया।रास्ते में कह देता तो वहीं इसको दे देते और अब न मालूम कितनी देर तक इसको छिपकर बैठना पड़ेगा। मेरा तो सोने का समय हो गया है तो उसने खिड़की से वह पात्र बाहर फेंक दिया और सो गया।वह चोर वहीं खिड़की के नीचे छिपा था पात्र को गिरते देखा तो बड़ा हैरान हो गया।उसने कहा अज़ीब आदमी है इतना कीमती पात्र ऐसे फेंक दिया है।खड़े होकर उसने कहा कि धन्यवाद।मैं तो चोरी करने आया थाऔर आपने पात्र फेंक ही दिया।
फकीर ने कहा मैने सोचा नाहक तुम्हें चोरी करवाने के लिये मैं क्यों ज़िम्मेवार बनूँ।तो मैंने कहा फेंक दूँ। मैं भी झंझट से बचूँ आराम से सो जाऊँ।तुम भी ले जाओ और चोर न बन पाओ।उस चोर ने कहा अज़ीब आदमी है।क्या मैं थोड़ी देर भीतरआ सकता हूँ?फकीर ने कहा इसीलिये मैने पात्र बाहर फेंका। भीतर तो तुम आते लेकिन तब,जब मैं सो गया होता। इसलिये मैंने पात्र बाहर फेंका कि मेरे जागते में भीतर आ जाओ तो शायद सोने का पात्र ही नहीं कुछ और भी तुम्हें दे सकूँ। उस चोर ने फकीर के चरण पकड़कर कहा कि मन में ईष्र्या होती है कि कब वह दिन होगा कि मैं भी सोने के पात्र खिड़की के बाहर फेंक सकूँ। आपने इतनी शान्ति कहाँ से पाई इतना आनन्द कहाँ से पाया कि सोने का पात्र इस तरह फेंक सकते हो?इतनी खुशी इतनी ज़िन्दगी कहाँ मिल गई ऐसा कौन सा अमुल्य धन है आप के पास कि सोने के पात्र का कोई मुल्य नहीं जान पड़ता है। कृपया मुझे भी कोई रास्ता बतायें। वह धन प्रदान करें। फकीर ने कहा मैं भी यही चाहता था कि तुझे वह कीमती धन मिल जाये। सन्तों ने कहा कि वह नाम का धन है। जिसे पाकर जीव मालामाल हो जाता है।

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