Wednesday, February 10, 2016

कलयुग से भेंट


     अमृत वेला (तीन बजे से लेकर छः बजे तक का समय)जिसे रात्री का चौथा पहर भी कहते हैं मानव शरीर को पाकर जीव का कर्तव्य है कि वह अमृत वेले में प्रभु सुमिरण में अपना चित्त लगाये। इस समय में संसार में नीरवता छाई होती है। कोलाहल से मुक्त एकान्त शान्त वातावरण में प्रभु भक्ति में मन अनायास ही स्थिर हो जाता है अतः जो इस समय निद्रा, आलस्य और प्रमाद त्याग कर प्रभु सुमिरण में मन लगाता है वह अक्षय सुख और आनन्द की निधि को प्राप्त करता है। परन्तु निद्रा आलस्य और प्रमाद के कारण ये जीव उस अक्षय सुख और आनन्द से वंचित रह जाता है क्योंकि मायाऔर काल यह नहीं चाहते कि जीव इनके पंजे से मुक्त हो जाये। वह जीव को प्रभु की ओर जाने नहीं देते। काल और माया विशेषतः अमृत वेले में ही जीव पर आलस्य प्रमाद और नींद की चादर डाल देते हैं ताकि जीव प्रभु सुमिरण करके परमात्मा से एकाकार न कर सके।
       एक बार श्री गुरुनानकदेव जी महाराज बाला और मर्दाना के साथ जीव कल्याण हेतु संसार में विचरण कर रहे थे। किसी निर्जन रमणीक वन में पहुँचे। उस समय कलयुग मानव वेष में छेदों से युक्त चादर औढ़े श्री गुरुनानकदेव जी के पास आया और विनय की। महाराज, मैं कलयुग हूँ।कलयुगी जीवों को माया में भरमा कर प्रभु मिलन के मार्ग में बाधा डालना मेरा काम है। जीवों की सुरती का नाता प्रभु से तोड़ कर माया की तरफ लगाना मेरा काम है। लेकिन आपजीवों को प्रभु प्राप्ति के मग पर अग्रसर करने के लिये अनथक प्रयास कर रहे हैं कठिनार्इंयां झेल रहे हैं मेरी आपसे विनय है कि आप जीवों को प्रभु से जोड़ने का कार्य छोड़ देें तो मैं आपको सारी पृथ्वी का राज्य दे दूँगा।आपको संसार के सारा सुख ऐश्वर्य,हीरों जवाहरात से जड़े भव्य महल, ऋद्धियाँ सिद्धियाँ दूँगा।आप सुख ऐश्वर्य से युक्त जीवन व्यतीत कीजिए परन्तु इस मार्ग को छोड़ दीजिए।श्री गुरुनानकदेव जी ने फरमाया कलयुग यदि तेरा काम प्रभु से सम्बन्ध तोड़ने का है तो हमारा काम प्रभु से जोड़ने का है। तू हमें सांसारिक सुखों का लोभ दिखा कर हमें कर्तव्य से विमुख करना चाहता है।तू पहले अपना कर्तव्य पथ तो छोड़। पीछे हमसे कुछ कहना।और सुन,जो प्राणी भी सतपुरुषों की शरण में आएगा और उन के वचनों पर अमल करेगा उस पर तेरा प्रभाव न चल सकेगा।सन्त जन अपने कार्य में निरत हैं तो तू अपना काम करता जा। परन्तु सन्तों के सन्मुख अपनी न चलाना। कलयुग नतमस्तक हो वहां से चला गया। तब मर्दाना ने बाबा जी से विनय की महाराज यह मानव तो हीरे मोतियों के महल बनाकर दे रहा था ऋद्धियां सिद्धियाँ आदि सब कुछ देने को कह रहा था। लेकिन मुझे आश्चर्य ये है किआपको इतना धन पदार्थ देने को तैयार था परन्तु जो उसने चादर औढ़ी हुई थी उसमें तो सैंकड़ों छेद थे। कंगाल भला कुबेर का खज़ाना कैसे दे सकता है?जिसके पासओढ़ने के लिये पूरी चादर नहीं वह दूसरों को क्या देगा?बाबा जी ने फरमाया अभी वह मार्ग में ही होगा  उसके पास जाकर इस संशय का निवारण स्वयं ही कर ले। श्री आज्ञा पाकर मर्दाना अभी थोड़ी ही दूर गया था वह मानव नज़र आया मर्दाना ने आवाज़ लगाई-भले मानस, ज़रा ठहरो और कृप्या मेरे संशय का निवारण तो करते जाओ। कलयुग ठहर गयाऔर मर्दाना ने कहा।आप हमारे गुरुदेव को हीरे मोती,भव्य महल आदि दे रहे थे। लेकिन आपने स्वयं जो चादर ओढ़ी हुई है वह तो छेदों से युक्त है। जिसके पास ओढ़ने के लिये पूरा कपड़ा भी नहीं वह दूसरों को कैसे इतना खज़ाना दे सकता है?उस मानव ने कहा मर्दाना मैं कलयुग हूँ मेरा काम प्रभु से प्रीत जोड़ने वालों की प्रीत तोड़ना है।अमृत वेले में योगीजन प्रभु के प्यारे भक्त सुमिरण ध्यान करते हैं उस समय सुरति अनायास ही शब्द में एकाग्र हो जाती है। उस समय में सारे संसार परआलस्य प्रमाद और निद्रा की चादर डाल देता हूँ ताकि कोई उठकर भजन सुमिरण न कर सके। लेकिन जो सौभाग्यशाली गुरुमुख जन जीव सतपुरुषों की शरण में आ जाते हैं उनके सतउपदेशों पर चलते हैं वे आलस्य और निद्रा को त्याग कर मेरी इस चादर में छेद करके बाहर निकल जाते हैं और सुमिरण ध्यान में लग जाते हैं प्रभु के नाम के अमृत रस का पान करके अमर हो जाते हैं। इस चादर में जितने भी छेद हैं उन  प्रभु प्रेमियों द्वारा किये गये हैं।

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