Wednesday, February 24, 2016

ईश्वर इच्छा-जीव का भला

श्री परमहंस अद्वैत मत के प्रवर्तक,रूहानी सम्राट श्री श्री 108 श्री परमहंस दयाल जी परमार्थ पथ पर आरूढ़ होकर स्थान स्थान पर भक्ति-अभिलाषी आत्माओं को सत्संग लाभ करा रहे थे। प्रेमी जन अपनी हार्दिक भावना श्री चरणों में निवेदित करते और वे सत्संग द्वारा उनको तृप्त करते थे। इसी प्रकार एक बार जयपुर में विराजमान थे। एक प्रेमी ने विनय की-प्रभो! सत्पुरुषों के पास ऐसी कौन सी शक्ति होती है जिससे वे कुदरत के स्वामी होते हैं?
     श्री वचन हुए कि सत्पुरुष ईश्वरेच्छा को सत्य मान उद्विग्न नहीं होते।इसीलिये जो संसार में घटित होता है उसे परमात्मा की इच्छा का कारण मानते हैं,उन्हें आत्मानुभूति होती है। यही कारण है कि वे प्रकृति के स्वामी बनते हैं। उन्हें यह विदित है कि परमात्मा की रचाई सृष्टि में जो भी हो रहा है,स्थिति, उत्पत्ति, प्रलय-सब में भलाई निहित है। संसारी प्राणी ज़रा सी विपरीत हालत में घबरा जाते हैं। और समझते हैं कि हमारे प्रयत्न से परिस्थित में सुधार हो सकता है। बस यही उद्विग्नता ही उनके महादुःख का कारण बनती है।
     इस पर एक सत्य प्रणाण है कि अरब के एक गाँव में एक भक्त रहता था। वह इश्वरेच्छा में संतुष्ट था। ऐसे व्यक्ति की सहनशीलता असीम रखनी होती है। ईश्वर की मौज में राज़ी रहना अत्यन्त साहस का काम है। परन्तु परमात्मा जिसको ऐसी सामथ्र्य देता है उनके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता। वह भक्त जब भी कोई बात करता अथवा उपदेश देता तो यही कहा करता कि परमात्मा के हर एक काम में कोई न कोई रहस्य छिपा होता है। उसकी मौज में बिना कुछ दखल लिए अथवा अपनी बुद्धि व चतुराई का हस्तक्षेप किए सत्य सत्य कर मानते जाना चाहिए। ईश्वर की प्रत्येक लीला अथवा घटना में भलाई ही छिपी होती है। उसकी ऐसी अवस्था एवं प्रभु भक्ति की तल्लीनता से सभी गाँव वाले उसे पूज्नीय समझते एवं उसका सम्मान करते थे।
     एक समय अचानक उस गाँव के कुत्ते एकाएक मर गये। लोगों ने आकर उससे कहा कि कुत्ते चौकीदारी खूब किया करते थे। भला उनको एकदम मारने में परमात्मा को कौन सी भलाई नज़र आई है? उसने उत्तर दिया कि इसमें कोई न कोई भलाई का रहस्य छिपा हुआ होगा। दूसरे दिन गाँव के तमाम मुर्गे भी मर गए। पुनः लोग इकट्ठे होकर उसके पास गये और कहा कि मुर्गे की बाँग से समय का पता चल जाता था। इससे प्रभु सुमरिण के लिए समय पर उठ जाते थे। अब क्या होगा?(क्योंकि उस समय प्रायः लोग मुर्गे की बाँग एवं धूप छाँव से ही समय का पता लगाते थे कि अब दिन अथवा दोपहर का कितना समय है। आज की भांति घड़ियों का प्रचलन अधिक नहीं था।)इसमें प्रभु को क्या भलाई नज़र आई है। उसने पुनः वही साधारण सा उत्तर दिया कि इसमें प्रभु की भलाई छिपी होगी।
     तीसरे दिन ऐसा कोहरा पड़ा कि सारा गाँव में आग बिल्कुल न जल पा रही थी,नाही दीपक जल सकता था।(क्योंकि उन दिनों लकड़ियाँ जलाकर उनकी आग दबा देते थे, पुनः उसी दबी आग से आग सुलगा लेते थे उस दिन कोहरे से सब आग ठण्डी पड़ गई।) संध्या समय सब व्यक्ति मिलकर उसके पास गए और विनय की हज़रत! अब फरमाइए, कुल गांव में अंधेरा और चूल्हा ठण्डा पड़ा है। न तो आग सुलगी है,न चिराग रोशन होता है। खाना काहे से पकावें, और क्या खावें? उसने जवाब दिया कि सब्रा करो, सब रहस्य पता चल जाएगा। रात को सब जैसे-तैसे अपने घरों में सो रहे। उसी रात एक राजा जो कि नगरों पर आक्रमण कर उनपर विजयी होता हुआ, गाँवों को लूटता हुआ उधर से सेना सहित गुज़रा। जब उस गांव के समीप पहुँचा उसने अपनी सेना से कहा कि गांव तो गैर-आबाद व खाली मालूम होता है। न कुत्ते भौंकते हैं, न मुर्गे बोलते हैं, न कहीं रोशनी नज़र आती है। यदि यहां आबादी होती तो कुछ न कुछ निशान अवश्य नज़र आते अर्थात् सेना तथा राजा ने उस ओर रुख न किया और गांव को बिना लूटे वहां से गुज़र गए। उस समय गांव वालों को पता चला कि कुत्तों, मुर्गों के मरने व आग न जलने में परमात्मा ने क्या भलाई की। यदि ऐसा न होता तो आज स्त्री व बच्चे तक सब कत्ल हो जाते और सामान धन आदि भी लूटा जाता। उन सबने उस भक्त जी से क्षमा माँगी और पुनः उसका सम्मान करते हुए मिलजुलकर रहने लगे।

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