मुल्लानसरूद्दीन एक रास्ते से गुज़र रहा है।अकेला है।और कुछ आवारा लड़कों ने उसे घेर लिया है।और वे उसका मज़ा लेना चाहते हैं।तो उनसे छुटकारा पाने के लिए नसरूद्दीन ने कहा,कि तुम्हें पता है,मैं कहां जा रहा हूँ?आज राजमहल में भोज है और सभी को निमंत्रण है,बेशर्त! जो भी आना चाहे आ जाये।इतना नसरूद्दीन कह भी न पाया था कि लड़के राजमहल की तरफ भागे।जब सारे लड़कों को उसने राजमहल की तरफ भागते देखा तो उसने सोचा हो न हो,बात सच ही है। नहीं तो इतने लोग! वह भी भागा। उसने कहा, जाने में हर्ज़ ही क्या है?
पहले तुम दूसरे को धोखा देना चाहते हो।देते-देते तुम खुद धोखा खा जाते हो। क्योंकि जब दूसरों को भरोसा आ जाता है तो तुम्हें भी भरोसा आ जाता है। भरोसा संक्रामक है। इसलिए तुम जो झूठ बहुत दिन तक बोलते रहे हो,तुम्हें पक्का याद नहीं रह जाता कि वह झूठ है या सच है।
No comments:
Post a Comment