Thursday, February 11, 2016

चित्रकार को पर्स देना चाहा


इस जगत में जो भी आपकी दशा है, वह आपकी ही वासना के कारण है। वासना का अर्थ है, जो मिला है उससे हम तृप्त नहीं। जो है उससे हम तृप्त नहीं। हम अस्तित्व से कहते हैं कि इतना काफी नहीं,यहऔर चाहिए यह और चाहिए। अस्तित्व से हमारी मांग है कि हम तृप्त होंगे तब,जब यह सब हो जाये।अस्तित्व ने जो दिया है,उससे हम राजी नहीं। और अस्तित्व ने सब दिया है। जीवन दिया है और जीवन के अनूठे रहस्य दिये हैं और जीवन का परम आनन्द छिपा रखा है भीतर आपके। लेकिन वह खुलेगा तब जब आप राजी हो जायें अस्तित्व से।आपको तो उसे देखने की फुर्सत ही नहीं कि अस्तित्व ने क्या दिया। आप तो माँग किये जा रहे हैं,कि ये दो वो दो,इस देने की माँग में वह छिप ही गया है, जो दिया ही हुआ हैऔर आपको पता नहीं,जो आप मांग रहे हैं,वह कुछ भी नहीं है।जो आपको मिला ही हुआ है,उसके सामने जो आप मांग रहे हैं वह कुछ भी नहीं।
        एक बहुत अरबपति महिला ने एक गरीब चित्रकार से अपना चित्र बनवाया। चित्र बन गया,तो वह अमीर महिला अपना चित्र लेने आयी। वह बहुत खुश थी चित्रकार से उसने कहा, कि क्या उसका पुरस्कार दूँ?चित्रकार गरीब आदमी था। गरीब आदमी वासना भी करे तो कितनी बड़ी करे,मांगे भी तो कितना मांगे?हमारी माँग गरीब आदमी की मांग है परमात्मा से। हम जो मांग रहे हैं वह क्षुद्र है। जिससे मांग रहे हैं, उससे यह बात मांगनी नहीं चाहिए। तो उसने सोचा मन में कि सौ डालर माँगूं दो सौ डालर मांगू, पाँच सौ डालर मांगूं। फिर उसकी हिम्मत डिगने लगी। इतना देगी, नहीं देगी। फिर उसने सोचा कि बेहतर यह हो कि इसी पर छोड़ दूँ,शायद ज्यादा दे।डर तो लगा मन में कि इस पर छोड़ दूँ पता नहीं दे या न दे, या कहीं कम दे और एक दफा छोड़ दिया तो फिर। तो उसने फिर भी हिम्मत की। उसने कहा कि आपकी जो मर्ज़ी। तो उसके हाथ में जो उसका बैग था, पर्स था, उसने कहा, अच्छा तो यह पर्स तुम रख लो।यह बड़ी कीमती पर्स है।पर्स तो कीमती था लेकिन चित्रकार की छाती बैठ गयी कि पर्स को रखकर करूंगा भी क्या?माना कि कीमती हैऔर सुन्दर है,पर इससे कुछ आता जाता नहीं। इससे तो बेहतर था कुछ सौ डालर ही मांग लेते। तो उसने कहा,नहीं नहीं मैं पर्स का क्या करूँगा,आप कोई सौ डालर दे दें। उस महिला ने कहा तुम्हारी मर्ज़ी।उसने पर्स खोला,उसमें एक लाख डालर थे,उसने सौ डालर निकालकर चित्रकार को दे दिये और पर्स लेकर वह चली गयी। चित्रकार अब तक छाती पीट रहा हैऔर रो रहा है,मर गये मारे गये, अपने से ही मारे गये।आदमी करीब करीब इस हालत में है। परमात्मा ने जो दिया है, वह बंद है, छिपा है,और हम मांगे जा रहे हैं, दो दो पैसे, दो दो कौड़ी की बात और वह जीवन की जो संपदा उसने हमें दी है, उस पर्स को हमने खोल कर भी नहीं देखा है।

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