Monday, February 22, 2016

अच्छे संगतरे


एक बार एक महात्मा जी किसी शहर में से गुज़र रहे थे। उनके साथ में एक सतसंगी भी था। जब वे दोनों बाज़ार में से निकले तो वहाँ बाज़ार में एक फल बेचने वाला आवाज़ दे रहा था,""अच्छे संगतरे''-""अच्छे संगतरे''। उसकी इस आवाज़ को उन महात्मा जी ने तथा उनके साथी सतसंगी सेवक ने भी सुना,तो उस सेवक ने हाथ जोड़ कर महात्मा जी से निवेदन किया,""महाराज! देखिये, यह फल बेचने वाला भी क्या झूठा और ठग है। जो संगतरे उसने टोकरी में रखे हुये हैं, वे तो निहायत गले सड़े और बासी हैं,फिर भी यह पुकार रहा है,""अच्छे संगतरे''-""अच्छे संगतरे''।
     बात असल में यह थी कि सचमुच ही फल बेचने वाले की टोकरी में निहायत खराब, गले सड़े और बासी संगतरे थे, जिनकी खातिर वह आवाज़ लगा रहा था। महात्मा जी ने यह सुना तो आगे से हँसकर फरमाया,""अरे भोले!वह बेचारा तो ठीक ही कह रहा है। उसकी टोकरी में रखे हुये संगतरे ताज़ा हों या बासी-अच्छे हों या खराब,इससे हमें क्या सरोकार। लेकिन जो बात वह कह रहा है,वह तो सोलह आने ठीक और सच ही है। उसमें झूठ कहाँ है?''उसकी आवाज़ पर गौर करो।वो बेचारा कहता है,""अच्छे संग तरे।-""अच्छे संग तरे''। अर्थात् जो कोई अच्छी संगति में जायेगा,उसका तर जाना निश्चित है।आवाज़ सोलहआने सच्ची है,इसलिये अब हम भी कहते हैं,""अच्छे संग तरे।''और तुम भी कहो, "'अच्छे संगतरे।''बात मतलब की कही गई थी। सत्संगी सेवक ने यह सुना और महात्मा जी के चरणों में प्रणाम कियाऔर कहा,आप धन्य हैं।

1 comment:

  1. Jaise hum sab ko shree gurumaharajji bhav sagar tarainge. Unke charno main lakh lakh dandvat pranam, bolo jai kara bol mere shree gurumaharaj ke jai.

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