Friday, January 8, 2016

10.01.2016 गरीबी मेरी ज़रूरत है


एक यहूदी फकीर हुआ। झुसिया। बहुत गरीब आदमी था। उससे ज्यादा गरीब आदमी नहीं था कोई। और गांव का राजा एक दिन सुबह-सुबह घोड़े पर निकला था। वह अकसर इस झुसिया को देखता था झाड़ के नीचे बैठा। सर्दी हो तो कंपता रहता, कपड़े उस पे ठीक न थे। आग मिल जाती थी, वही बहुत था। लेकिन रोज़ सुबह वह देखता था कि वह प्रार्थना करता है। तो एक दिन राजा रुक गया। कि यह प्रार्थना क्या करता है। वह झुसिया कह रहा था परमात्मा से कि तेरा बड़ा अनुग्रह है। तू मेरी सब ज़रूरतों की फिक्र रखता है, सब ज़रूरतें पूरी कर देता है। राजा से बरदाश्त न हुआ, वह रुका। जब प्रार्थना पूरी हो गई, उसने कहा, ""झुसिया! झूठ बोलते तो शर्म आनी चाहिए। साधू को झूठ नहीं बोलना चाहिए। यह सरासर झूठ है। और तू परमात्मा से ही झूठ बोल रहा है। सर्दी है, लकड़ी नहीं जलाने को, कपड़ा नहीं पहनने को, तन तेरा कंप रहा है, रोटी मुश्किल से मिलती है। छप्पर है नहीं तेरे पास, झाड़ के नीचे जीता है। यह गरीबी! और परमात्मा से कह रहा है कि सब ज़रूरतें तू मेरी पूरी करता है।'' झुसिया हँसने लगा। उसने कहा, ""गरीबी मेरी ज़रूरत है।'' यह जो आदमी है, इसके लिए  मृत्यु  उल्टी हो के राम हो जायेगी। गरीबी मेरी जरूरत है। झुसिया ने कहा। यह वचन बड़ा अदभुत है। क्योंकि कुछ चीजें हैं जो गरीबी में ही विकसित होती है। अगर तुम उन्हें देख पाओ तो गरीबी एक ज़रूरत है। कुछ चीजें हैं जो अमीरी में मर जाती हैं अगर तुम उन्हें देख पाओ तो अमीरी ज़रूरत नहीं है। कुछ चीज़ें हैं जो अमीरी में विकसित होती हैं, अगर तुम उन्हें देख पाओ तो अमीरी एक ज़रूरत है। तुम्हारे देखने पे सब निर्भर है। झुसिया ने कहा, गरीबी मेरी ज़रूरत है अब इसकी मुझे ज़रूरत है इसलिए वह मुझे गरीब बनाये हुए हैं।

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