Thursday, January 7, 2016

सुनकर ह्मदय में उतारें

JAI GURU JI
एक मूर्तिकार ने तीन मूर्तियाँ बनाईं। तीनों एक-सी थी। मूर्तिकार ने पहली मूर्ति का मूल्य 5 रुपए, दूसरी का 50 रुपये और तीसरी मूर्ति का मूल्य 50 हजार रुपए रखा। सभी लोग आश्चर्यचकित थे। जो आता यही कहता तीनों मूर्तियां बिल्कुल समान हैंष फिर मूल्य में अंतर क्यों? बात राजा तक पहुँची। राजा नें मूर्तिकार को बुलाकर पूछा-जब तीनों मूर्तियाँ एक-सी हैं, तो मूल्य में अंतर क्यों? मूर्तिकार बोला-हुज़ूर! यह तो इनके गुणों के अनुसार है। राजा ने मंत्री से पूछा, महामंत्री, मूर्तियों के मूल्य में इतना अंतर क्यों? जबकि रूप-रंग में तीनों समान हैं। मंत्री महोदय ने कुछ सोचा और फिर एक सलाई मंगवाई। मंत्री ने पहली मूर्ति के कान में सलाई डाली, तो वह दूसरे कान से निकल गई। दूसरी मूर्ति के कान में सलाई डाली, तो वह मुँह से निकल आई। अब तीसरी मूर्ति के कान में सलाई डाली, तो वह सलाई ह्मदय में उतर गई।
     मंत्री जी ने कहा, राजन्! यह सत्य है कि तीनों मूर्तियों का मूल्य अलग-अलग होना चाहिए। जो व्यक्ति कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता है, वह निकृष्ट है। जो कान से सुनकर मुँह से बोल देता है, वह मध्यम श्रेणी का व्यक्ति है। और जो व्यक्ति कान से सुनकर बातों को ह्मदयंगम् कर लेता है, वही उत्कृष्ट है। इसलिए तीसरी मूर्ति कीमती है। और इन मूर्तियों का यही रहस्य है।
जीवन का सत्य भी यही है कि हर व्यक्ति को जीवन में अच्छी बातें (सत्संग) जानकर, सुनकर ह्मदयगम करना लेना चाहिए। जो व्यक्ति सत्संग एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। वह निकृष्ट, और जो व्यक्ति एक कान से सुनकर कर दूसरों को तो सुनाते हैं लेकिन आप अमल नहीं करते वे पहले वालों की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं वे मध्यम वर्ग के हैं और जो व्यक्ति सत्संग सुनकर उस पर अमल करते हैं अर्थात उसे ह्मदयंगम् कर लेते हैं वे सर्वश्रेष्ठ हैं। ऐसे व्यक्ति  सुखी और सफल होते हैं।

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