Friday, January 8, 2016

जहाँ दुनियां का अन्त वहां सत्य


सूफियों की एक पुरानी कथा है, कि एक फकीर सत्य की खोज में था उसने अपने गुरु से पूछा, कि सत्य कहाँ मिलेगा? उसके गुरु ने कहा, सत्य? सत्य वहाँ मिलेगा, जहाँ दुनियाँ का अन्त होता है। तो उस दिन से वह फकीर दुनियाँ का अन्त खोजने निकल गया। कहानी बड़ी मधुर है। वर्षों चलने के  बाद, भटकने के बाद, आखिर उस जगह पहुँच गया, जहाँ आखिरी गाँव समाप्त हो जाता था। और उसने गाँव के लोगों से पूछा कि दुनियाँ का अन्त कितनी दूर है? उन्होने कहा, ज्यादा दूर नहीं है बस यह आखिरी गाँव है। थोड़ी ही दूर जाकर वह पत्थर लगा है, जिस पर लिखा है, यहाँ दुनियाँ समाप्त होती है। मगर उधर जाओ मत।
     वह फकीर हँसा। उसने कहा, हम उसी की तो खोज में निकले हैं। लोगों ने कहा, वहाँ बहुत भयभीत हो जाओगे। जहाँ दुनियाँ अन्त होती है, उस गड्ढों को तुम देख न सकोगे। मगर फकीर तो उसी की खोज में था, सारा जीवन गँवा दिया था। उसने कहा, हम तो उसी की खोज में हैं और गुरु ने कहा है जब तक दुनियां के अन्त को न पा लोगे, तब तक सत्य न मिलेगा। तो जाना ही पड़ेगा। कहते हैं, फकीर गया। गाँव के लोगों की उस ने सुनी नहीं। वह उस जगह पहुँच गया जहाँ आखिरी तख्ती लगी थी, कि यहाँ दुनियाँ समाप्त होती है। उसने एक आँख भरकर उस जगह को देखा, शून्य था वहाँ। कोई तलहटी न थी उस खड्ढ में। आगे कुछ था ही नहीं।
     तुम उसकी घबड़ाहट समझ सकते हो। वह जो लौटकर भागा, वह जो भागा, तो रुका ही नहीं। वह जाकर गुरु के चरणों में ही गिरा। तब भी वह कँप रहा था। तब भी वह बोल नहीं पा रहा था। बामुश्किल, उसको पूछा, कि मामला क्या है? हुआ क्या? वह गूँगे जैसा हो गया था। सिर्फ इशारा करता था पीछे की तरफ। क्योंकि जो देखा था, वह बहुत घबड़ाने वाला था। गुरु ने कहा, नासमझ! मैं समझता हूँ। लगता है तू दुनियाँ के अन्त पर पहुँच गया। तख्ती मिली थी, जिस पर लिखा था कि यहाँ दुनियाँ का अन्त है? उसने कहा, कि बिल्कुल ठीक! मिली थी। तूने तख्ती के उस तरफ देखा, क्या लिखा था, उसने कहा, कि उस तरफ खाली शून्य था। मैं तो देखकर जो भागा हूँ, तो रुका ही नहीं कहीं। पानी के लिए नहीं, भूख के लिए नहीं। उस तरफ तो मैने नहीं देखा। गुरु ने कहा, वही भूल हो गई। अगर तू उस तरफ तख्ती के देख लेता, तो इस तरफ लिखा है, यहीं दुनियाँ का अऩ्त होता है, उस तरफ लिखा है, यहाँ परमात्मा का प्रारम्भ होता है।
     एक सीमा पूरी होती है, दूसरी सीमा शुरु होती है। परमात्मा निराकार है। शून्य में उसी निराकार के करीब तुम पहुँचोगे। इसका मतलब, जहां तुम्हारा राग-रंग समाप्त होता है, जहां दुनियाँ समाप्त होती है, जहाँ जीवन के खेल-खिलौने समाप्त होते हैं, आखिरी पड़ाव आ जाता है। देख लिया सब, जान लिया सब, हो गया दो कौड़ी का, कुछ सार न पाया। सब बुदबुदे टूट गये, फूट गये, सब रंग बेरंग हो गये। दुनियाँ के अन्त होने का अर्थ है, जहाँ वासना समाप्त हो गई। वासना ही दुनियां है। महत्वाकाँक्षा का विस्तार ही संसार है। लेकिन वहां आते ही घबड़ाहट होगी। क्योंकि वहाँ फिर शून्य साक्षात खड़ा हो जाता है। जहाँ महत्वाकाँक्षा मिटती है, वहाँ शून्य रह जाता है। उस शून्य को बुद्धपुरुष निर्वाण, मोक्ष कहते हैं। सूफी फकीर उसको फना कहते हैं। मिट जाना बिलकुल मिट जाना, न हो जाना, उस न हो जाने में ही सब हो जाना है।

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