Thursday, January 28, 2016

भिखारी ने वृद्धा को कटु वचन कहे


     एक भिखारी था जो भीख मांग कर गुज़ारा करता था चूँकि वह गुरु-शब्द से खाली था,अतएव उसका मन सदा चंचल बना रहता था। इस कारण जिह्वा पर भी उसे नियंत्रण नहीं था। एक दिन भीख मांगने गया तो उसे भीख में चावल और मूँग की दाल मिली। ले गया एक बुढ़िया के पास। उसे कहा कि मुझे इस चावल दाल की खिचड़ी पका दो। बुढ़िया ने आग जलाई और चावल-दाल को देगची मे डाल कर चूल्हे पर पकने को धर दिये। जितनी देर तक खिचड़ी बने,उतनी देर तक भी उस भिखारी से चुप न बैठा गया। मन और जिह्वा पर नियंत्रण
तो था नहीं, सोचने लगा कि यह वृद्धा अकेली रहती है इसकी गुज़र कैसे होती होगी?अऩ्ततः बुढ़िया से पूछ ही लिया कि तुम्हारी गुज़र-बसर कैसे होती है?बुढ़िया ने कहा कि मेरे पास एक भैंस है,उसका दूध बेच कर अपना पेट पालती हूँ। भिखारी बोला-तुम्हारे घर का द्वार तंग दिखाई देता है, कहीं तुम्हारी भैंस इसमें फँस कर मर गई तो तुम क्या करोगी?
    बुढ़िया को यह बातअच्छी न लगी,बोली-ऐसेअशुभ वचन मत बोलो, वरनाअधपके चावल दाल लेकरअपना रास्ता नापो। भिखारी ने अऩुनय-विनय की और चुप बठने का वचन दिया।किन्तु उसका चंचल मन बिना शब्द के ताले के चुप न रह सका।कठिनता से एक मिनट बीता तो फिर पूछा कि तुम अकेली होअथवा तुम्हारी कोई सन्तान भी है? माई बोली- मेरा एक लड़का है मोटर ड्राइवरी का काम सीख रहा है।भिखारी बोला-मोटर दुर्घटना हो जाय और तुम्हारा लड़का मर जाये तो क्या करोगी?
     माई से उसकी बात सहन न हो सकी। अधपकी खिचड़ी की देगची उतार कर बोली-यह लो अपनी खिचड़ी और तत्काल नौ दो ग्यारह हो जाओ। उसके पास बर्तन तो था ही नहीं, चादर की झोली में खिचड़ी डलवाई और अपने भाग्य को कोसता हुआ वहां से चल दिया। मार्ग में चावलों की मांड बहती जा रही थी। किसी ने पूछा कि यह क्या बह रहा है? भिखारी बोला-यह मेरे मुख से निकले हुये कटु वचनों का परिणाम है, जो मेरी झोली में पड़ा हुआ है, वही बह रहा है। इसी पर गुरुवाणी में वचन है किः- सहु वे जीआ अपणा कीआ।।

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