Saturday, January 23, 2016

पालतू पक्षी ने राजा की रक्षा की


एक राजा को शिकार करने और पक्षी पालने का बड़ा चाव था। उसने अनेक पक्षी पाल रखे थे।उन पक्षियों में एक छोटा सा अति सुन्दर चकोर भी था,जो राजा को अधिक प्रिय था। उसे वह अपने हाथ पर बिठाये हुए सदैव अपने निकट रखता। जहाँ कहीं भी राजा जाता,यह चकोर भी उसके कन्धे पर सवार हुआ उसके साथ ही जाता। राजा एक बार वन में शिकार खेलने निकला।सामन्त मन्त्री दरबारी आदि भी साथ थे। एक हरिण का पीछा करते हुए मार्ग से भटककर कहीं का कहीं पहुँचा। जब तक सही मार्ग न मिले, साथियों को खोज सकना असम्भव था। इस प्रकार बीहड़ बन में भटकते भटकते राजा और उसका घोड़ा दोनों थकावट से चूर चूर हो गये। इधर भूख-प्यास ने राजा को सताना शुरु किया। उसका घोड़ा भी भूखा-प्यासा हो चुका था। भोजन मिलने की तो जंगल में क्या आशा होती, अलबत्ता जल की खोज आरम्भ हुई। तलाश करते करते एक जगह जगह की चट्टान के पास जल दिखाई दे गया। दो चट्टानो के बीच की दरार से बूँद बूँद जल रिस रहा था। राजा वहीं घोड़े से उतर पड़ा एक वृक्ष से कुछ पत्ते तोड़कर उसने दोना बनाया और उसमें बूंद बूँद गिरते हुए जल को एकत्र करने लगा। जब दोना भर गया और राजा ने उसे उठाकर मुख से लगाना चाहा, तभी उसके कन्धे पर बैठे चकोर ने उड़कर अपना पैर उनमें मारकर दोना लुढ़का दिया। राजा को इस पर क्रोध तो आया,क्योंकि वह बहुत प्यासा था, किन्तु वह चुप रहा। अब उसने पुनः दोने को भरने के लिये झरने के नीचे रख दिया। बड़ी देर में जाकर दोना भर गया। अब जब राजा ने उसे मुख तक ले जाने का संकल्प किया कि फिर एक बार चकोर उड़ा और उसने पूर्ववत् पैर मार दिया। दोना फिर लुढ़क गया। अब तो राजा मारे क्रोध के लाल-पीला हो गया। उसने आव देखा न ताव, झट चकोर को पकड़ा और उसकी गर्दन मरोड़ दी। मृत चकोर को फैंककर राजा ने दोना फिर एक बार झरने के नीचे टिका दिया। उसी समय अचानक उसकी दृष्टि ऊपर चट्टान की दरार कीओर उठ गई। देखता क्या है कि जहाँ से बूँद बूँद जल टपक रहा है,वहीं एक मृत सर्प की देह पड़ी है और जल की बूँदें उसके ऊपर से होकर नीचे आ रहीं हैं। यह देख कर राजा के तो होश ही उड़ गये।वह सोचने लगा कि यह विषाक्त जल यदि मैं पी लेता,तो निश्चय ही जीवित न रह सकता।चकोर तो मेरा सच्चा मित्र और हितैषी था।वह मुझे यह प्राण-घातक जल पीने नहीं देना चाहता था। हाय! मैने बड़ा ही गज़ब किया,जो बेचारे को निरपराध मार डाला।
     परन्तु अब पश्चाताप करने से हो भी क्या सकता था?चकोर तो मारा जा चुका था।राजा ने क्रोधावेश में भरकर जो गलत कदम बिना विचार किये उठाया,उसके परिणाण में उसे एक शुभ चिन्तक साथी और सच्चे मित्र से हाथ धोना पड़ा।अपने प्रिय चकोर के वियोग का दुःख उसे जीवन पर्यन्त सहना पड़ा और अपने कृत्य पर सदा के लिये पश्चाताप करते रहना उसे नसीब हुआ।
     कतिपय बातें, जिन पर हम बिना सोचे-समझे उत्तेजित हो जाते हैं, हमारी भलाई की भी होती है। अतएव जब कभी उत्तेजना का ऐसा क्षण उपस्थित हो, तब हमें थोड़ा सा अपने आप पर नियन्त्रण करके क्रोध के कारण पर विचार करना चाहिये।तथा यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि आवेश मेंआकर हम जो कदम उठाने वाले हैं,उसकापरिणाम क्या होगा? परिणाम पर दृष्टिपात करने से ही क्रोध टल जाता है।तथा जिसनेउत्तेजना के  उस भयानक क्षण को टाल  दिया, वह बाद में ठण्डे मन से विचार करने पर उसमें अपना लाभ ही देखेगा, फिर वह आयु भर पछताने और हाथ मलने से बचा रहेगा।

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