Friday, January 8, 2016

13.01.2016 सन्त बायज़ीद को तम्बूरा मारा


सन्त बायजीद से भी एक व्यक्ति जो कि संगीतज्ञ था, बड़ी ईष्र्या करता था और आते-जाते हुये उन्हें अकारण ही अपशब्द कहा करता था, परन्तु वे उसकी बातों का तनिक भी बुरा न मानते और हंसते हुये निकल जाते, जिस से वह व्यक्ति और भी अधिक चिढ़ जाता। एक दिन उस व्यक्ति का किसी अन्य व्यक्ति से झगड़ा हो गया था और वह क्रोध में भरा हुआ बैठा था कि अकस्मात् सन्त बायजीद उधर आ निकले। उस व्यक्ति ने उन्हें पहले तो गालियाँ दीं और फिर क्रोध में तंबूरा उनके सिर पर दे मारा। बायजीद के सिर से रक्त बहने लगा, परन्तु वे बिना कुछ कहे आगे बढ़ गये।
     दूसरे दिन सन्त बायजीद ने अपने एक शिष्य को बुलाया और उसे कुछ रुपये और मिठाई का थाल देते हुए उस व्यक्ति का पता बतलाया और कहा-उसके पास जाकर मेरी ओर से कहना कि बायजीद के कारण कल आपको बड़ा कष्ट हुआ। आपका तंबूरा भी टूट गया। मुझे इसका खेद है। कृपया तंबूरे का मुल्य और मिठाई का यह थाल स्वीकार कीजिये। शिष्य ने वैसा ही किया। बायजीद के सद्व्यवहार का उस व्यक्ति पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। उसे बायजीद के प्रति किये गये अपने दुव्र्यवहार पर बड़ी ग्लानि हुई। वह तुरन्त सन्त बायजीद के पास गया और रोते हुये उनके चरणों पर गिर पड़ा तथा अपने अपराधों के लिये क्षमा मांगने लगा। उस दिन से उसके जीवन में परिवर्तन हो गया। वह सन्तों का श्रद्धालु बन गया।
     हमारा कर्तव्य है कि उपरोक्त कथाओं से शिक्षा ग्रहण करें और उनसे प्रेरणा लेकर क्षमा, करुणा, दया, अक्रोध, नम्रता, दीनता तथा प्रेम आदि
सद्गुणों को ह्मदय में धारण करें। तभी हम सच्चे अर्थों में गुरुमुख बन सकते हैं और सतगुरुदेव दातादयाल जी के कृपा पात्र बनकर जीवन सफल कर सकते हैं।

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