Friday, January 8, 2016

15.01.2016 मैत्री का महान सूत्र शिष्टव्यवहार


कुछ व्यक्तियों ने लिंकन से कहा, आपके शत्रु बहुत हैं। अभी आप सत्ता में हैं। उनको समाप्त क्यों नहीं कर देते? लिंकन ने कहा, ""उन्हें समाप्त कर रहा हूँ।'' लोगों ने कहा, अभी तक किसी को जेल में नहीं डाला, फाँसी नहीं दी, देश से नहीं निकाला। फिर कैसे समाप्त कर रहे हैं? लिंकन बोले, शिष्टव्यवहार से सबको जीत रहा हूँ। कुछ ही समय में वे मेरे मित्र बन जाएंगे। फिर कोई शत्रु नहीं रहेगा। सब शत्रु समाप्त हो जाएंगे।
     यह मैत्री का महान सूत्र है। इसके समक्ष शत्रु कोई रहता ही नहीं। मैत्री की भावना जागने पर अनेक समस्याएं समाहित हो जाती हैं। प्रतिदिन हमारे मन पर अनेक मैल जमा होते जा रहे हैं। उनमें सबसे क्लिष्ट मैल है शत्रुता का, द्वेष का। इस दुनियाँ का यह अचल नियम है कि आदमी जैसा चाहता है वैसा होता नहीं है। इस संसार में रूचि और चिन्तन का भेद है, व्यवहार और व्यवस्था का भेद है, रहन-सहन और खान-पान का भेद है, रीति रिवाजों का भेद है, ये सब भेद न रहें यह कभी सम्भव नहीं है। रूचि की भिन्नता है तब भेद समाप्त नहीं हो सकते। इन भेदों के कारण हमारे मन में शत्रुता और द्वेष का भाव पनपता है, यह अवांछनीय है। भगवान ने कहा, दूसरे के साथ बुरा व्यवहार करने में यह देखो कि तुम्हारा स्वयं का अहित हो रहा है। दूसरे का अहित हो या नहीं, यह निश्चित नहीं है, किन्तु तुम्हारा अहित निश्चित है, उसमें कोई विकल्प नहीं है। दूसरे के प्रति तुम्हारे मन में बुरा विचार आया, चाहे उसका पता किसी को न लगे, पर उसका अंकन तुम्हारे मस्तिष्कीय कोशों में जो जाएगा, उसका बुरा परिणाम तुम्हें अवश्य ही भोगना पड़ेगा। दूसरे का अनिष्ट करने में स्वयं का अनिष्ट है। जो इस सूत्र को पकड़ लेता है वह कभी दूसरे का अनिष्ट नहीं कर सकता। मैं दूसरे का अनिष्ट कर रहा हूँ यह सोचना मूच्र्छा है। वह नहीं जानता कि पर्दे के पीछे क्या हो रहा है। भीतर क्या हो रहा है? जिसके मन में मैत्री की भावना का जागरण होता है, वह कभी किसी का अहित नहीं कर सकता।

No comments:

Post a Comment