Monday, January 25, 2016

ययाति की कथा


आदमी अमर क्यों होना चाहता है?क्योंकि जीवन छोटा मालूम पड़ता है और वासनाएं इतनी बड़ी मालूम पड़ती है कि पूरी नहीं होती। अरबों खरबों रूपये जमा करने हैं।बड़े पदों पर पहुँचना है, सारे साम्राज्य को निर्मित करना है। आकाँक्षाए अनन्त हैं और जीवन थोड़ा है यह अड़चन है इसलिये आदमी अमरता चाहता है।कहीं कोई अमृत मिल जाये,कहीं कोई पारस मिल जाये कि छूते ही आदमी अमर हो जाए।बस फिर कोई दिक्कत नहीं है फिर कितनी ही हों वासनाएँ सभी को पूरा करके रहेंगे। लेकिन वासनाओं का स्वभाव दूष्पूर है। वासनाएं इसलिये पूरी नहीं होती कि तुम्हारा जीवन छोटा है ऐसा मत समझना।वासनाएं इसलिये पूरी नहीं होती कि पूरा होना उनका स्वभाव नहीं है।
     ययाति की बड़ी प्रसिद्ध कथा है वह मरने के करीब हुआ वह सौ साल का हो गया था। मृत्यु लेने आई गिड़गिड़ाने लगा। वह बड़ा सम्राट था। वह था तो बलशाली लेकिन ऐसा दुर्दिन देखकर रोने लगा। और मृत्यु के पैर पकड़ने लगा। गिड़गिड़ाने लगा। और कहने लगा कि मुझे छोड़ दो।अभी तो मेरी वासनाएं भी पूरी नहीं हुईऔर तुम लेने आ गई। अन्याय मत करो।ये दिन तो ऐसे ही बीत गये बेहोशी में।सौ साल मुझे और मिल जायें। बस। तो अब मैं चूकूँगा नहीं भोग ही लूँगा। सौ साल बाद तुम आ जाना, तुम मुझे तैयार पाओगी। पर मौत ने कहा, किसी को तो ले जाना पड़ेगा। खाली हाथ जाने का कोई उपाय नही है। तू अपने बेटों में से किसी को राज़ी कर ले। सौ बेटे थे ययाति के। सौ साल जी चुका था। सैंकड़ों रानियाँ थी। मौत ने तो इसलिये कहा क्योंकि यह तो तरकीब थी मौत की कि कोई बेटा जाने को कैसे राज़ी होगा। जब बाप सौ साल का मरने को राज़ी नहीं तो बीस पच्चीस बरस का बेटा कैसे राज़ी होगा।जब इसकी वासनायें पूरी नहीं हुर्इं तो चालीस पचास साल केआदमी की वासनाएँ कहाँ पूरी हुई होंगी। मौत की यह तरकीब थी होशियारी थी न कहने का कुशल ढंग था राजनीति थी।
      ययाति ने अपने लड़कों को बुला लिया। बड़े लड़कों ने तो ध्यान ही न दिया वे चुपचाप बैठे रहे। उन्होने तो सिर भी न हिलाया।उन्होने कहा यह बूढ़ा क्या बातें कर रहा है। ये मरना नहीं चाहता हमें मारना चाहता है जब इसकी इच्छाएं पूरी नहीं हुई तो हमारी कहां से पूरी हो जायेंगी। हम तो इससे कम ही जिये हैं। इसने तो सब भोग ही लिया है। ये हटे तो सिहांसन खाली हो तो हम भी थोड़ा भोग सकें। बाप पहले मरे यह तो नैसर्गिक नियम है। बाप के पहले बेटा मरे और वह भी बाप माँगे और कहे कि तू मर जा ऐसे बाप के लिये कौन मरने को राज़ी होगा। बड़े लड़के तो चुप रहे लेकिन एक छोटा लड़का जिसकी उम्र कुल उन्नीस बीस बरस की थी अभी कली खिली भी न थी अभी जवान हो ही रहा था अभी मूँछ की रेखाएंआनी शुरु हुई थी वह उठकर पास आ गया और उसने कहा कि मैं तैयार हूँ। ययाति भी चौंका। वह बेटा उसे बहुत प्यारा था।लेकिन अपने से ज्यादा प्यारा तो बेटा भी नहीं होता।अपनी जान जाती हो तो पति भी प्यारा नहीं, पत्नि भी प्यारी नहीं, बेटा भी प्यारा नहीं।आदमी अपने लिये ही दूसरों से प्रेम करता है। जब मौत का सवाल हो तो तुम अपने को बचाओगे कि बेटे को? ययाति को दुःख तो हुआ लेकिन मज़बूरी थी उसने कहा क्षमाकर।लेकिन मेरा रहना ज़रूरी है। मौत हैरान हुई। मौत ने उस बेटे के कान में कहा नासमझ। तेरा बाप मरने को तैयार नहीं, तू मरने को तैयार है?उस बेटे ने कहा, बाप को न मरते देखकर ही मैं तैयार हो गया। सोचा कि जब सौ साल में भी इच्छाएं पूरी नहीं होती तो मैं भी क्या कर लूँगा।अस्सी साल और गँवाने से क्या फायदा है?अस्सी साल बाद तुम आओगे मृत्यु के देवता। तब अस्सी साल तुम्हारी राह देखने की क्या ज़रूरत है?निपटारा हो ही जाने दो। बाप की इच्छायें पूरी नहीं हुई इससे स्पष्ट है कि इच्छाएं पूरी नहीं होती। नहीं तो मेरे पिता जी के पास क्या कमी थी?हज़ारों रानियां हैं,धन सम्पत्ति है, बड़ा साम्राज्य है,जगत में कीर्ति है,क्या था उसे जो उपलब्ध नहीं था जो भोगने को शेष रह गया हो। लेकिन लगता है भोग का कभी अन्त नहीं होता तुम मुझे ले चलो। अब इसी मूढ़ता में पड़ना नहीं चाहता। मौत अपने वचनानुसार ययाति के बेटे को ले गई। लेकिन कहते हैं कि हर सौ साल बाद मौत आती ययाति गिड़गिड़ाने लगता हर बार मौत ययाति के एक बेटे को ले जाती। अन्त में मौत ने कहा कुछ तो सोचो। तुम्हारी वासनाएं कभी पूरी होगी?तब उसे होश आया यह भी जल्दीआ गया हज़ार ही साल मे आ गया लेकिन तुम(जीव) तो मालूम कितने हज़ार साल से जी रहे हैं पर हर बार मौत आती है और तुम भूल ही जाते हो एक शरीर ले जाती है तुम्हें दूसरा शरीर मिल जाता है तुम उस शरीर में फिर बेहोश हो जाते हो। ययाति ने जाते वक्त एक वचन लिखाआने वाली संतति के लिये कि कितना ही भोगो।भोग भोगने से नहीं जाते भोगों का कोई अन्त नहीं। तृष्णा दुष्पूर है वासना पूरी नहीं होती। वासना का स्वभाव पूरा होना नहीं है।दस हजार हैं तो फिर दस लाख की वासना, फिर वासना दस करोड़ की,दस अरब की वासना क्षितिज की भाँति उतनी आगे बढ़ जाती है जैसे आकाश छूता हुआ दिखाई पड़ता है पृथ्वी को कहीं छूता नहीं बढ़ते जाओ दीखता है यह रहा दो चार मील चलने की बात है कि पहुँच जायेंगे लेकिन कभी नहीं पहुँचते चाहे पृथ्वी के हज़ारों चक्र लगा लें। वह मृग मरीचिका है।

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