Friday, January 8, 2016

11.01.16 मुर्गा बाँग देता हो तो सूरज निकलता है


छिपकली के सम्बन्ध में सुना हो, कि छिपकलियों में कहीं कोई विवाह था और एक महल की छिपकली को भी निमंत्रण मिला। निश्चित ही सबसे पहले मिला, क्योंकि वह महल में रहती थी। उसने कहा, मैं आ न सकूंगी। क्योंकि अगर मैं आ गई तो छप्पर गिर जाएगा महल का। मैं ही तो सम्हाले रहती हूँ। छिपकली सोचती है, कि महल के छप्पर को सम्हाले हुए है। अगर चली गई, महल गिर जाएगा।
     तुमने उस बूढ़ी की कहानी सुनी है, जो सोचती थी कि उसका मुर्गा बांग देता है, इसलिए सूरज उगता है। उसका तर्क भी ठीक था। क्योंकि ऐसा कभी न हुआ था। जब भी मुर्गा बांग देता तभी सूरज उगता था। गांव के लोग हँसते थे, कि बूढ़ी तू पागल हो गई है। एक दिन वह नाराज़ होकर अपने मुर्गे को लेकर दूसरे गांव चली गई और उसने कहा, कि अब रोओगे, अब भटकोगे। अब  खोजोगे मुझे और तड़पोगे, पछताओगे, कि क्या गंवा दिया। अब कभी सूरज न उगेगा। मुर्गा मैं लिए जा रही हूँ। और दूसरे गांव में मुर्गे ने बांग दी, तब सूरज उगा। उसने कहा, अब रो रहे होंगे नासमझ! सूरज यहां निकला है। जहां मुर्गा है, वहां सूरज है। तात्पर्य ये कि आदमी समझता है मैं ही सब कुछ कर रहा हूँ लेकिन ये सब निर्रथक धारणा है।

1 comment:

  1. हम इंसानो कई सोच से भी कही ऊँची हस्ती है हमारे प्रभु की।
    कभी भी हमे ये समझने की भूल नहीं करनी चाइये की करने वाले हम इंसान है क्योकि सब कुछ करने वाले हमारे हिर्दय सम्राट सतगुरु स्वामी जी है।

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