Sunday, January 31, 2016

चाहे कहीं चले जाओ मन साथ है


     एक आदमी भाग गया परेशान होकर। दिन-रात की कटकट-पत्नी, बच्चे,दुकान,ग्राहक, कहीं कोई शांति नहीं। जंगल भाग गया।एक झाड़ के नीचे जाकर बैठा था आराम से।देखा, एक कौअे ने बीट कर दी। नाराज़ हो गया। उठा लिया पत्थर कौअे को मारने को।तब उसे ख्याल आया कि जंगल आये थे शांति के लिए, यह कौआ यहां भी है। पत्नी से भाग जाओगे, कौओं से कहां भागोगे?
     वह बहुत दुःखी हो गया।उसने कहा,संसार में कोई सार नहीं,उसने जाकर नदी के किनारे लकड़ियां इकट्ठी कीं। खुद की चिता बना रहा था। लकड़ियां काट कर इंतज़ाम जब तक वह कर पाया तब तक पास के गांव में खबर पहुँच गई।वहां से लोग आ गये।उन्होने कहा कि भैया ज़रा दूर ले जाओ,यहां जलोगे तो बास गांव में पहुँचेगी। तो उस आदमी ने कहा,न जिंदा रहने देते,न मरने देते। न जीने की स्वतन्त्रता है, न मरने की कोई स्वतन्त्रता है। तुम अगर उथले हो,अर्थात अगर तुम्हे कोई भी नाराज़ कर सकता है,कोई भी प्रसन्न कर सकता है तो।भाग कर जाओगे भी कहां। तो न तुम जीओगे, न तुम मरोगे, तुम दोनों के बीच घिसटोगे, वही तुम्हारी स्थिति है।

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