Saturday, January 30, 2016

मुज़रिम को भी शक हुआ कि मैने जुर्म किया


एक आदमी ने हत्या की। उस पर अदालत में मुकदमा चला। मुकदमा लंबा चला। कई गवाह थे,कई वकील थे,जो मारा गया वह बड़ा पैसे वाला आदमी था।जिसने मारा वह भी बड़ा धनपति,प्रतिष्ठित आदमी था। मुकदमा भारी था।कोई तीन साल के बाद,निर्णय तो दूर,जैसा कि अक्सर अदालत में होता है सब चीज़ेंऔर संदिग्ध हो गर्इं। जितने गवाहआये एक दूसरे के विपरीत थे। फाइलें इकट्टी होती गर्इं, निर्णय दूर रहा,आखिर मजिस्ट्रेट घबड़ा गया और उसने कहा,दिखता है इस सबसे हल नहीं होगा। हत्यारे से उसने कहा,तो मैं तुमसे ही पूछता हूँ, तुम सच-सच बता दो और हम निर्णय कर दें।अब कोई उपाय नहीं दिखता और।जितना खोजा उतने भटक गये। और यह तो जंगल में जैसे रास्ता न मिलता हो, ऐसी हालत आ गई। अब तुम पर निर्भर है। उस आदमी ने कहा, कि यही अगर था, तो पहले ही पूछ लेना था। मैं खुद ही उलझ गया। पहले मुझे भी भरोसा था कि हत्या की  है, लेकिन तीन साल अदालत की कार्यवाही,वकीलों के जवाब-सवाल,अब तो मुझे भी शक हो गया। तुमने देर कर दी। अब तो पक्के विश्वास से मैं नहीं कह सकता कि मैने की या नहीं की। तीन साल पहले मुझे ख्याल था। वह भ्रांति ही रही होगी।
     हर आदमी की ज़िन्दगी में ऐसा घटता है। धीरे-धीरे झूठ बहुत बार पुनरुक्त होने पर जड़ जमा लेता है। जब दूसरे उस पर भरोसा करते हैं, और उनकी आँखों में भरोसा दिखाई पड़ता है, तुम्हारी आँखें भी भरोसे से भर जाती हैं। जब कोई व्यक्ति स्वयं के अध्ययन में उतरेगा, स्वाध्याय करेगा,तो पहले तो इस जाल के भीतर प्रवेश करना पड़ेगा,जो तुमने झूठ का खड़ा कर रखा है। यही कठिनाई है। इससे तुम पार हो गये, इस दलदल से पार हो गये, फिर तो स्वच्छ सरोवर है। पर यह दलदल बड़ा है। और इसी से पार होने में हिम्मत की ज़रूरत है। क्योंकि बड़ी पीड़ा होगी।जब तुम पाओगे तकि तुमने अपने संबंध में जो सत्य मान रखे थे, वे सभी झूठ हैं। जब तुम पाओगे मेरी मुस्काराहट सच्ची नहीं,मेरी आँखों की चमक सच्ची नहीं मेरा प्रेम सच्चा नहीं कुछ भी सच्चा नहीं है। जब तुम पाओगे मेरे सारे अंतरसंबंध,परिवार समाज सब धोखा है।और हर चीज़ के नीचे कहीं कोई आधार नहीं, सब निराधार खड़ा है तुम बहुत घबड़ा जाओगे।इस घबड़ाहट से गुज़र जाये वही साधू है वही तपस्वी है।

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